विश्वचक्र
* विश्वचक्र *
*07/01/ 2019*
*सोमवार*
*07/01/ 2019*
*सोमवार*
*मेरी "मन" की बात है जो आज़ लिखकर बता रहा हूँ । इससे मुझे "आत्मशांति" मिलेगी की मैंने मेरा कर्तव्य पूर्ण किया औऱ यहि कारण है आजकल मैं मेरे पास स्टेज पर बुलाकर किसीका सम्मान नही करता । क्योंकि मेरे करीब तो लाखों लोग आना चाहते है पर आ नाही पाते औऱ जो करीब आते है उन पर उन लाखों लोगों का "नकारात्मक चित्त" आता है जो करीब चाहकर भी भी नही आ सके ।यहि कारण है की मेरे करीब रहनेवाले भी जब तक "कर्ता" का भाव छोड़कर रहते है उतने समय ही रह पाते है औऱ दूसरा जो एक बार दूर हो गया वह वापस कभी नही आता । इससे अच्छा है "दूर ही रहो" औऱ चैतन्य का आनंद लो । मैं आपके शरीर से भले ही दूर हूँ लेकिन आप आँखे बंद करके देखो तो आप मुझे अपने "ह्र्दय" में ही अनुभव करोगे । क्योंकि अब मैं वही हूँ । आप सभी को खूब -खूब आशीर्वाद ।*
*आपका*
*बाबा स्वामी*
*बाबा स्वामी*
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