आत्मसाक्षात्कार एक संस्कार
आत्मसाक्षात्कार एक *"संस्कार"* है । सद्गुरु को अगर हम संपूर्ण *"समर्पित "* है , तो सदगुरु के गुण भी हमारे में उतरना चाहिए ।
सदगुरु का चित्त *"शुद्ध"* है ,टों हमारा क्यॊ नही ?
सदगुरु के मन में *"ईर्षा"* भाव नही है , तो मेरे मन में क्यों है ?
सदगुरु के मन में किसी के भई प्रति *"दुर्भावना "*नही है , तो हमारे मन में क्यों है ?
सदगुरु *"निष्पाप"* है ,तो मैं क्यों नही ?
सदगुरु को *"लोभ"* नही है ,तो मुझे *"लोभ "* क्यों है ?
सदगुरु के मन में *"ईर्षा"* भाव नही है , तो मेरे मन में क्यों है ?
सदगुरु के मन में किसी के भई प्रति *"दुर्भावना "*नही है , तो हमारे मन में क्यों है ?
सदगुरु *"निष्पाप"* है ,तो मैं क्यों नही ?
सदगुरु को *"लोभ"* नही है ,तो मुझे *"लोभ "* क्यों है ?
इन्ही सब बातों के लिए *"आत्मचिंतन "* करना हीं गहन ध्यान अनुष्ठान का मुख्य *"उद्देश "* है ।
*श्री बाबा स्वामी*
*ग .ध्या .अ .संदेश*
*09/03/2013*
*ग .ध्या .अ .संदेश*
*09/03/2013*
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