चन्द्रमा
फिर उन्होंने शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से चन्द्रमा के प्रकाश में बैठकर चन्द्रमा पर चित्त एकाग्र कर ध्यान करना सिखाया । रोज अभ्यास की समयाविधि बढ़ती गई और पूर्णिमा की रात सम्पूर्ण रातभर कराया । " चित्त को चन्द्रमा पर एकाग्रकरो और स्वयं के और चन्द्रमा के बीच एक सूक्ष्म संबंध कायम करो और यह महसूस करो कि तुमने अपना सम्पूर्ण समर्पण चन्द्रमा को देवता मानकर कर दिया है। और चन्द्रमा की शीतल, पवित्र ऊर्जा चन्द्रमा के प्रकाश के रूप में अपने पर बरस रही है और आप उस चन्द्रमा के प्रकाश में शीतलता अनुभव कर रहे हो। और वह शीतलता तुम सूर्यनाड़ी के ऊपर विशेष रूप सेअनुभव कर रहे हो। और धीरे-धीरे लिवर ठंडा हो रहा है और उस साधना से आत्मशान्ति अनुभव हो रही है ।"
हि.का. स. योग
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