ध्यान में प्रगति
" ध्यान में प्रगति शाश्वत और धीमी होनी चाहिए। प्रथम, विचारों को नियंत्रित करो, मन को नियंत्रित करो, वासना को नियंत्रित करो। मन को शुद्ध करो, मन को सकारात्मक करो। प्रथम, मन को वैररहित करना होगा, बाद में वह गुस्सारहित होगा। एकाध परिस्थिति में, एकाध क्षण में मनुष्य को क्षणिक गुस्सा आ सकता है लेकिन उसका बुरा प्रभाव मनुष्य के ऊपर तीन दिनों तक रहता ही है। और गुस्से से भी खराब स्थिति है-वैरभाव। यह सतत गुस्सा करने से निर्मित हुआ राक्षस है।
वैरभाव का लाभ उठाकर मनुष्य में बुरी आत्माएँ प्रवेश करती हैं और वैरभाव में मनुष्य का अपने कर्मो पर नियंत्रण नहीं रहता है। वैरभाव रखने से हम दूसरों के हाथों की कठपुतली हो जाते हैं।
वैरभाव से हम हमारे ऊपर का नियंत्रण खो देते हैं और ऐसे समय बुरी आत्माएँ हमारे ऊपर नियंत्रण कर लेती हैं और हमारे हाथों बुरे, और बुरे कर्म कराती हैं। इसलिये मनुष्य को इससे बचना चाहिए। किसी व्यक्तिविशेष पर सतत गुस्सा करने से ही उसके प्रति वैरभाव का निर्माण हो जाता है, इसलिए हमारा हमारे ऊपर संपूर्ण ध्यान होना चाहिए।"
हि.स.योग.४, पेज. ३२०.
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