आहार का ध्यान के साथ सीधा संबंध
पिछले १५दिनों में गुरुमाँ ने मुझ पर एक प्रयोग किया। मुझे सुबह नाश्ते में फल और ज्यूस , दोपहर में दाल , चावल , सब्जी , रोटी (ज्वार, गेहूँ, मक्का) हरा सलाद व रात में मूँग की खिचडी या चावल व मूँग की दाल- इस प्रकार भोजन करवाया , तो अनुभव हुआ - मेरा वजन कम हो गया , मुझे हल्का महसूस होने लगा और ध्यान की एक उच्च कक्षा में बड़ी आसानी से पहुँच गया।
जब हम हल्का, सुपाच्य भोजन करते हैं , तो लिवर पर अधिक दबाव नहीं आता है। ध्यान का संबंध चित्त से है , चित्त का संबंध लिवर से है और लिवर का संबंध आपके आहार से है। यानि आहार का ध्यान के साथ सीधा संबंध है।
हल्का आहार लेने पर मैंने अनुभव किया - पहले मेरी काफी चेतना-शक्ति गलत आहार को पचाने में ही खर्च हो जाती थी। उस चेतना-शक्ति की बचत हो गई और वही चेतना-शक्ति ध्यान में अच्छी स्थिति बनाने में परिवर्तित हो गई। और यही लाभ सभी साधक भी ले इसी शुद्ध इच्छा से यह अनुभव आपको बता रहा हूँ। आप भी तली हुई चिजों और मीठी वस्तुओं से परहेज करें। बीच में एक-आध दिन आपने खा भी ली , तो उसका असर नहीं पडता , रोज के आहार में नहीं होनी चाहिए।
माँसाहार करना यानि मरा हुआ प्राणी खाना है। और मरा हुआ खाना यानि मरी हुई चेतना ग्रहण करना है। जबकि ध्यान अपने भीतर की जिवंत चेतना को जगाने की प्रक्रिया है। और माँसाहार इसके विपरीत है। इसलिए ध्यान करने वाले साधक माँसाहार नहीं करते है।
अपनी आध्यात्मिक उन्नति में आहार का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है
*--- पूज्य स्वामीजी*
*मधुचैतन्य अक्टू. २००५/११*
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