मन की एकाग्रता ,मूर्ति और सामूहिकता

हमे  अपनी  अपनी  आध्यात्मिक  प्रगती  के  लिए  मन  की  एकाग्रता  करनी  होगी  और  मन  की  एकाग्रता  करने  का  माध्यम  मूर्ति  है । मूर्ति  तो  वास्तव  में  एक  पत्थर  है , पर  उस  पत्थर  में  आकार  दिया  गया  है । वह  आकार  हमारे  मन  का  भाव  निर्माण  करता  है । मूर्ति  तो  अपनी  एकाग्रता  के  लिए  है । हमारा  भाव  ही  उसमें  देवत्व  का  निर्माण  करता  है . . . वह  भाव  ही  मनुष्य  को  झुका  सकता  है  और  मनुष्य  जितना  झुकता  है , उतना  ही  उसका  स्वयं  का  अस्तित्व  समाप्त  हो  जाता  है । और  मनुष्य  का  अस्तित्व  जितना  समाप्त  होता  है , उतना  ही  वह  सामूहिकता  के  साथ  जुड़  जाता  है । यह  सामूहिकता  की  शक्ति  ही  परमात्मा  की  शक्ति  है ।

           ही .का .स .योग
                 भाग  २

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