आत्मसंयम
दुःख यह होता है --- गुरुदेव की कृपा में साधकों को आसानी से आत्मसाक्षातकार मिला है लेकिन उनको उसकी कदर ही नही है । केवल आत्मसाक्षातकार पाने से कभी आध्यात्मिक प्रगति नही होती । उस ऊर्जा को आत्मसंयम मे परिवर्तित करना होता है । आत्मसंयम प्रथम पादान है । आत्मसंयम से ही शरीर पर अनुशासन लाया जा सकता है । क्योंकि जिसका अपने शरीर पर नियंत्रण नही है , वह अपने विचारों पर नियंत्रण क्या खाक करेगा !
॥ सदगुरु के र्हदय से ॥
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