फूलों की खुशबू से
प्रत्तेक आत्मा मोक्ष की कामना लेकर इस धरती पर जन्म लेती है किंतु संसार का मायाजाल उसे भ्रमित कर देता है। जग की भूलभूलैया में भटकते - भटकते अचानक उसे अपना जीवनध्येय अर्थात मोक्ष की याद आती है। तब उसी क्षण से आत्मा गुरु से मिलने को आतुर हो उठती है। जब तक उसे गुरु नही मिलता आत्मा की स्थिति जल - बिन - मछली - सी हो जाती है। तब जीवन में गुरु का प्रवेश होता है। गुरु आत्मज्ञानी होता है। उसकी कृपा में साधक को भी आत्मज्ञान प्राप्त होता है। सदगुरु साधक को पारिवारिक जिम्मेदारियाँ निभाते हुए ध्यान करने की प्रेरणा देता है।
[ परमवंदनिय गुरुमाँ ]
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