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Showing posts from September, 2018

समाधान आत्मा की शुद्ध भावना

समाधान तो आत्मा की शुद्ध भावना है, फिर वह बाहर कैसे मिल सकता है ? औऱ जो पाने की बात कर रहे हो, वह पाकर भी समाधान थोड़े मिलने वाला है।वह जो पाना चाहते हो, वह पाकर आसक्त्ति की आग और भड़...

अहंकार से साधक सामूहिकता से बाहर हो जाता है और ध्यान छूट जाता है

 इस ध्यान पद्धति मे सबकुछ आसान है,  पर इसमें बने रहना ही कठिन है। इसका पहला दोष है कि इसमें साधक को आहंकार आता है। अहंकार इसलिए आता है क्योंकि वह ध्यान के माध्यम से सामूहिक शक्ति के साथ जुड जाता है और फिर एक साधक में हजारों लोगों का बल आ जाता है। और फिर जब वह गुरुकार्य करता है तो,  वह बडी आसानी से हो जाता है और कार्य संपन्न हो जाने पर उसे अहंकार आ जाता है कि उसने वह कार्य किया ! एक मनुष्य को हजारों लोगों की शक्ति दी जाए तो ऐसा होना स्वाभाविक है। इसी अहंकार से साधक सामूहिकता से बाहर हो जाता है और ध्यान छूट जाता है। क्योंकि अहंकार उत्पन्न होने पर वह असंतुलित हो जाता है और वह जब असंतुलित हो गया तो वह ध्यान कैसे करेगा ? उसका ध्यान तो छूट ही जाएगा। यह इस ध्यान की पद्धति का बडा दोष हैं। हि.स.योग.४, पेज. २८0.

प्रश्न : कोई लिफाफा खोले बिना, पत्र के भीतर क्या लिखा है , क्या वह स्वामीजी जान सकते है ?

प्रश्न :    कोई लिफाफा खोले बिना,  पत्र के भीतर क्या लिखा है , क्या वह स्वामीजी जान सकते है ? स्वामीजी : लिफाफा स्वामीजी  तक भेजने की आवश्यकता नही है । लिफाफा दुनिया में कही भी लिखा जाए, उसे  जाना जा सकता है । मधुचैतन्य जू./ऑ./सप्टें.2005

कौनसी कौनसी पावन भूमी पर स्थापित हो रही है यह मंगलमुर्तीयाँ?

****** *॥गुरुशक्तिधाम॥* ****** कौनसी कौनसी पावन भूमी पर स्थापित हो रही है यह मंगलमुर्तीयाँ? अभी तक गुरुशक्तियों की असीम कृपा में पूज्य स्वामीजी के १२ गहनध्यान अनुष्ठान निर्विघ्न रूप से पार हो गए है और *१२मंगलमूर्तियाँ बन चुकी है।* इनमें से एक मंगलमूर्ति की स्थापना स्थाई रूप में हो गई है और बाकी मूर्तियाँ अस्थाई रूप में है। *प्रथम गहनध्यान अनुष्ठान (२००७)* मंगलमूर्ति स्थापना - श्री गुरुशक्तिधाम दांडी, नवसारी , गुजरात , भारत *द्वितीय गहनध्यान अनुष्ठान (२००८)* मंगलमूर्ति स्थापना -   श्री गुरुशक्तिधाम, लेस्टर, यु.के. *तृतीय गहनध्यान अनुष्ठान (२००९)* मंगलमूर्ति स्थापना - श्री गुरुशक्तिधाम , मॉन्ट्रियल , Canada *चतुर्थ गहनध्यान अनुष्ठान (२०१०)* मंगलमूर्ति स्थापना-- श्री गुरुशक्तिधाम , अजमेर , राजस्थान , भारत *पंचम गहनध्यान अनुष्ठान (२०११)* मंगलमूर्ति स्थापना- श्री गुरुशक्तिधाम , शिरोडा , गोवा , भारत *षष्टम गहनध्यान अनुष्ठान (२०१२)* मंगलमूर्ति स्थापना- श्री गुरुशक्तिधाम , पुनडी , कच्छ , भुज, भारत *सप्तम गहनध्यान अनुष्ठान (२०१३)* मंगलमूर्ति स्थापना...

श्री गुरुशक्तिधाम दुनिया का नया आविष्कार

गुरुशक्तिधाम में स्थापित मंगलमूर्ति की विशेषताएँ --- १) इस मूर्ति का साकार रूप पूज्य स्वामींजी का ही हैं। ऐसा पहली बार हुआ हैं की कोई गुरु ने अपने जीवित होते हुए अपनी मूर्ति बनवाई। २) इस मूर्ति में पूज्य स्वामीजी ने अपने जीवनकाल में अपने स्वयं के प्राण स्वयं  डाले हैं। यानि यह मूर्ति जिसकी हैं उसीने अपने जीवनकाल  उसमें अपने प्राण डाले हैं। और इसीलिए *यह मूर्ति जीवंत मूर्ति हैं।* ३) यह मूर्ति इस विश्व की  *आत्मसाक्षात्कार देने वाली , मोक्ष प्रदान करनेवाली* एकमेव मूर्ति हैं। इसके सान्निध्य में आनेवालों को एक *सुरक्षा कवच भी प्राप्त होता हैं।* यह मूर्ति अगले 800सालों तक कार्य करेगी। पूज्य स्वामीजी के समाधिस्थ होने के बाद यह *जीवंत मुर्तियाँ* ही स्वामीजी के आध्यात्मिक कार्य की  उत्तराधिकारी है और कोई नहीं। मंगलमूर्ति में स्वयं के प्राणो .....

भीतर का 'मैं' जब तक जीवित है, तब तक ध्यान कभी भी नही लग सकता

आपके भीतर का 'मैं' जब तक जीवित है, तब तक ध्यान कभी भी नही लग सकता। *'मेरा'* ध्यान लग रहा है। *'मेरा'* ध्यान नही लग रहा है.... *'मुझे'* ध्यान की अवस्था  प्राप्त हुई है ... *मुझे* ध्यान की अच्छी अवस्...
स्त्री को दूसरा दर्जा देकर वह अपने ही जन्म को भूल रहा है यानी अपनी जड़ पर प्रहार कर रहा है। वह अपनी माँ को भूल रहा है। जो पुरुष अपनी माँ से अधिक अनुराग रखता है , वह कभी भी किसी स्त...

अनुभूती सत्य है

अनुभूती वह सत्य है जो माया के आवरण को तोड देता है।जिस प्रकार से कभी कभी आकाश मे धुंध रहती है,लेकीन तब तक जब तक सूर्य उदय नही होता।एक बार सूर्य उदय हो जाता है सारा अंधेरा दूर हो ...

आध्यात्मिक प्रगति की पाँच पादाने

चौथी पादान : जीवंत सद्गुरु को मानना। यह सबसे आसान और सबसे कठिन कार्य है। सबसे आसान इसलिए है क्योंकि परमात्मा के इस माध्यम के पास आसानी से पहुँचा जा सकता है। क्योंकि यह माध्यम शिष्य के जीवनकाल में जीवंत रूप से उपस्थित होता है। एक मनुष्य जो अपने ही जैसा दिखता है , अपने ही जैसे हाव-भाव करता है , अपने ही जैसे सामान्य व्यवहार करता है , उसे परमात्मा मानना बडा कठिन मालूम होता है। ऐसा इस कारण होता है कि हमने सदियों से यह मान रखा है कि परमात्मा यानि वह जो वर्तमान में नहीं है , भूतकाल में ही है। यह केवल हमने मानकर रखा है जबकि वर्तमान में तो होता ही है। जीवंत गुरु की सामूहिक शक्तियाँ होती हैं। क्योंकि जिन लोगों का समर्पण उसके प्रति हुआ है या जिसे वह समर्पित हुआ है , उन शुद्ध आत्माओं की सामूहिकता की एक बड़ी शक्ति उसके साथ सदैव होती ही है। इस प्रकार जीवंत सद्गुरु से जुड़कर , वास्तव में , हम जीवंत शक्तियों के साथ जुड़ जाएँगे। जीवंत गुरु तक पहुँचना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि जीवंत गुरु ही जीवंत अनुभूति करा सकता है। परमात्मा की अनुभूति कराने के लिए जीवंत सद्गुरु चाहिए और जीवंत अनुभूति लेने क...

प्रश्न : क्या स्वामीजी विश्व में सर्वत्र विद्यमान है ?

प्रश्न :  क्या स्वामीजी विश्व में सर्वत्र विद्यमान है ? स्वामीजी :  विश्व में सर्वत्र विद्यमान परमात्मा है। परमात्मा से स्वामीजी जुड़े है। परमात्मा अलग है ।स्वामीजी अलग ...

आध्यात्मिक प्रगति के लिए चित्तशुद्धि अत्यंत आवश्यक

गुरुदेव की गुफा के आगे दाहिनी ओर एक जलप्रपात था। ऐसी ही एक सुबह थी। गुरुदेव ने कहा,"मैंने इसलिये तुम्हें उस जलप्रपात के पानी पर एकाग्रता करने के लिए कहा था क्योंकि पानी केव...

आध्यात्मिक ज्ञान से प्राप्त हुई ऊर्जा

मैं तुझे सत्य धटना बताता हूँ। उत्तरखंड के एक रामपाल राजा की कहानी मेरे गुरु ने बताई थी। वह अतिप्राराक्रमी, अतिबलशाली राजा था। जीवन में आनेवाली समस्या का जब कोई निदान नहीं मिलता , तब वह श्री मैत्री ऋषि के आश्रम में पहुँच जाता था। कुछ दिन उनके सान्निध्य में रहता और कुछ दिनों के बाद वापस जाकर अपना राज्य-कारभार चलाता था। पहली बार वह तब गया था, जब वह युद्ध में हार गया था। दूसरी बार वह अपनी पत्नी से झगड़ा होने पर आश्रम में, गुरुसन्निध्य में गया। तीसरी बार एक गृहयुद्ध के भय से गुरु के सान्निध्य में गया। और चौथी बार , पुत्री की मृत्यु हो जाने पर गुरुसन्निध्य में गया और अपने मन को शांत किया। वह अपनी लड़की से बहुत अधिक प्रेम करता था और उसके बिना वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता था। इसलिए उसकी लड़की की मृत्यु से थोड़े समय के लिए उसके मन में वैराग्य की भावना जागी थी, पर वह क्षणिक ही थी। थोड़े समय बाद वह अपने लड़के के व्यवहार से दुःखी होकर फिर से गुरुसन्निध्य में गया। प्रत्येक बार श्री मैत्री ऋषि उसके दुःखों को छोड़कर आध्यात्मिक चर्चा ही उससे करते थे। यह राजा उनके प्रवचन जब आश्रम के अन्य शिष्यों के स...

गुरुसान्निध्य

गुरुसान्निध्य का अधिक समय पूर्वजन्म के बुरे कर्मों को नष्ट करने में ही जाता है। और जैसे ही बुरे कर्म नष्ट होते हैं , शरीर नए कर्मों के जाल में उलझ जाता है और गुरुसन्निध्य छू...

चित्त

हमारा स्वयं का चित्त शुद्ध और पवित्र नहीं होता है , और हमारे इस चित्तरूपी कमण्डलु में हम जीवनभर अमूत इकठ्ठा करते रहते हैं , कोसी  मंदिर में जाते हैं , वहाँ से थोड़ा अमूत इकट्ठा ...

गुरुशक्तिधाम

हम  जैसे  ही  गुरुशक्तिधाम  मॆ  प्रवेश  करते  है ,हमारा  दीमाख  काम  करना  बंद  कर  देता  है ,और  एक  शून्य  की  अवस्था  प्राप्त  हो  जाती  है ,और  शरीर  भाव  संपूर्ण  समाप्त...

प्रकृति ही गुरु

इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आप आपकी जात छोड़ दो , आप आपकी प्रथाएँ छोड़ दो। आप आपका धर्म छोड़ दो , आप आपका खान-पान छोड़ दो। क्योंकि मेरी माँ का कहना है कि प्रत्येक स्थान का खान-पान वहाँ क...

माँ

माध्यम  हमारी  माँ  है । हमारे  लिए  क्या  अच्छा   है  और  क्या  बुरा  है , यह  हमसे  अधिक  उस  माध्यम  को  मालूम  है  तो  फिर  माँगना  क्या ?जो  है , उसमेँ  हम  खुश  है और जो  नही...

जंगल और वन

"कई वृक्ष मनुष्य की दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं, पर पर्यावरण के संतुलन की दृष्टि से बहुत उपयोगी होते हैं।और ये वृक्ष जंगल में ही पाए जाते हैं।सब प्रकार के वृक्ष जिन्हें कोई न...

सदगुरू परमात्मा के साक्षात् अवतरण

सदगुरू परमात्मा के साक्षात् अवतरण होते हैं। वे स्वाभाविक रूप में ही रहते हैं , पर वे स्वाभाविक होते नहीं हैं। सामान्य से लगते हैं,  पर सामान्य होते नहीं हैं।    उनका उनकी शक...

अच्छे आभामंडल का प्रभाव

ये पशु-पक्षी भी उस आभामंडल का आनंद लेते है।अच्छे आभामंडल का प्रभाव सभी प्रकार के पशु-पक्षियों को आकर्षित करता है। यही कारण है कि जिस स्थान पर सुरक्षितता अनुभव होती है, पक्...

अनुभूती

अनुभूती वह सत्य है जो माया के आवरण को तोड देता है।जिस प्रकार से कभी कभी आकाश मे धुंध रहती है,लेकीन तब तक जब तक सूर्य उदय नही होता।एक बार सूर्य उदय हो जाता है सारा अंधेरा दूर हो ...

अहंकार और स्वाभिमान

हमारे इस बिगड़े हुए संतुलन को भी हम कभी भी समझ नहीं पाते हैं। हम  इससे भी अपना स्वाभिमान समझ लेते हैं।वास्तव में स्वाभिमान तो वह स्तर है, जो हमें जीने की प्रेरणा और प्रोत्साह...

गेरुए वस्त्रों से लोगों की गुणग्राहकता एकदम बठ़ जाएगी

मठाधीशजी ने कहा , हमारी भी इच्छा है, आपके हाथों से आपके गुरु का कार्य और अच्छी तरह से हो इसीलिए यह सब बातों कह रहे हैं। अगर आपने गेरुए वस्त्र पहने तो लोग प्रथम दिन से ही आपके प्र...

सुबह का ध्यान हमारी आध्यात्मिक प्रगति करता है

सुबह का ध्यान हमारी आध्यात्मिक प्रगति करता है या ये समझें की सुबह ध्यान करके हम शक्तियाँ  प्राप्त करते है। और शाम को ध्यान करके हम शक्तियाँ बाँटते है। शाम का ध्यान सामूहि...

गेरुए वस्त

आपने कार्यक्रम के दौरान गेरुए वस्त्र घारण  करना चाहिए तो कार्यक्रम जैसा अनुरूप आपका वेष भी होगा और इससे आपके कार्यक्रम को एक सकारात्मक वातावरण प्राप्त होगा। मैंने कहा , ...

श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण भगवान उस काल के गुरु थे। वे अपने जीवनकाल में भी पहचाने नहीं गए। बहुत कम लोग उनके जीवनकाल में उनको पहचान पाए थे। किसी ने उन्हें माखनचोर कहा , किसी ने ग्वाला कहा क्योंकि उस काल में भी बहुत कम लोग वर्तमान काल में थे। इसलिए , वर्तमान में ही न हो , तो परमात्मा के वर्तमान स्वरूप को कैसे पहचानेंगे? इसलिए उन्हें भी नहीं जान पाए। वे भी उनके काल के गुरु ही थे। उनके माध्यम से परमात्मा की शक्ति बहती थी। वे भी माध्यम ही हैं , यह वे भी जानते थे , इसलिए उन्होंने कभी अपने-आपको भगवान नहीं कहा। हाँ, गीता वेदव्यासजी ने लिखी है जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं भगवान हूँ , पर वास्तव में , वह श्री वेदव्यासजी का भाव था। धीरे-धीरे श्रीकृष्णजी को मान्यता भगवान के रूप में मिलने लगी और वे भगवान माने गए , पर तब समय बित चुका था। परमात्मा के माध्यम , जो मान्यताप्राप्त होते हैं, उन्हें पहचानना आसान होता है क्योंकि सभी लोग उन्हें जानते हैं। पर वे अपने से तो दूर ही होते हैं। पर ऐसे किसी एक 'भगवान' की भक्ति करके भी भगवान के वर्तमान काल के स्वरूप (माध्यम) तक पहुँचा जा सकता है। *हिमालय का समर्पण...

*प्रश्न: स्वामीजी, सर्वोत्तम विडीओ शिबिर कैसे होगा? हम कैसे जाने कि शिबिर सफल हुआ है या नहीं?*

*प्रश्न: स्वामीजी, सर्वोत्तम विडीओ शिबिर कैसे होगा? हम कैसे जाने कि शिबिर सफल हुआ है या नहीं?* *स्वामीजी:* सर्व प्रथम जो लोग विडीओ शिबिर आयोजित कर रहे हैं , उन्होंने नियमित ध्यान...

सभी स्थान ध्यान करने के योग्य नहीं होते

साधक को ध्यान-साधना करते समय स्थान का सदैव 'ध्यान' रखना चाहिए। सभी स्थान ध्यान करने के योग्य नहीं होते हैं। कई स्थानों पर  बैठकर किया गया 'ध्यान' साधक के लिए हानिकारक सिद्ध ह...

आपका माल तो अच्छा है, श्रेष्ठ है लेकिन आपका पॅकिंग खराब है।

मठाधीशजी ने कहा , हमने सबने मिलकर कल रात को भी आपके ऊपर चर्चा की थी। शिविर पर भी चर्चा की थी , अनुभूति पर भी चर्चा की थी। सभी लोग आपको तो बोलने में संकोच करते हैं लेकिन हम सभी एक न...