अहंकार से साधक सामूहिकता से बाहर हो जाता है और ध्यान छूट जाता है

 इस ध्यान पद्धति मे सबकुछ आसान है,  पर इसमें बने रहना ही कठिन है। इसका पहला दोष है कि इसमें साधक को आहंकार आता है। अहंकार इसलिए आता है क्योंकि वह ध्यान के माध्यम से सामूहिक शक्ति के साथ जुड जाता है और फिर एक साधक में हजारों लोगों का बल आ जाता है। और फिर जब वह गुरुकार्य करता है तो,  वह बडी आसानी से हो जाता है और कार्य संपन्न हो जाने पर उसे अहंकार आ जाता है कि उसने वह कार्य किया !
एक मनुष्य को हजारों लोगों की शक्ति दी जाए तो ऐसा होना स्वाभाविक है। इसी अहंकार से साधक सामूहिकता से बाहर हो जाता है और ध्यान छूट जाता है। क्योंकि अहंकार उत्पन्न होने पर वह असंतुलित हो जाता है और वह जब असंतुलित हो गया तो वह ध्यान कैसे करेगा ? उसका ध्यान तो छूट ही जाएगा। यह इस ध्यान की पद्धति का बडा दोष हैं।

हि.स.योग.४, पेज. २८0.

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