समर्पण ध्यान एक संस्कार
संस्कार से मेरा आशय , इसके अंदर शरीर को कोई महत्व नही है । आपके अहंकार को पुष्टि मिले ऐसा कुछ भी नही है । देखिए , कोई भी पद्धति अवलंब करते है , उसके अंदर शरीर का उपयोग होता है , शरीर की उपयोगिता होती है औऱ उसके बाद में आप कह सकते है -इस पद्धति से , इस तरीके से मैने अभ्यास किया औऱ अभ्यास करके फिर ध्यान को प्राप्त् किया , ध्यान की स्थिति को प्राप्त् किया । इस प्रकार का कोई भी अहंकार आप कर सके ऐसा इसमें कुछ भी नही है । कुछ नही , चुपचाप आकर के आप बैठ जाओ , उसके बाद में आत्मा से आत्मा तक एक सूक्ष्म संपर्क स्थापित हो जाता है और एक आत्मा अपना ही एक अंश अन्य आत्माओं को प्रदान करती है । और प्रदान करने के बाद में , उस आत्मा का उस आत्मा के साथ एक आत्मीय संबंध स्थापित हो जाता है । ...
बाबा स्वामी
गुरुपूर्णिमा
2017
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