आत्मसुख

"मनुष्य अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक जिस सुख की खोज में रहता है, वह 'आत्मसुख' ही है | 'आत्मसुख' की खोज में कई बार भौतिक  सुविधाओं को ही वह आत्मसुख समझ लेता है | लेकिन भौतिक सुविधाओं से जो शरीर को आनंद मिलता है, वे 'सुविधाएँ' हैं, सुख नहीं है | 'आत्मसुख' तो बाजार से ख़रीदा नहीं जा सकता और न ही किसी सुविधाओं से मिल सकता है, क्योंकि आत्मसुख तो आत्मा की वह पूर्ण समाधान की 'अनुभूति' है जो मनुष्य को 'मोक्ष की स्थिति' मिलने के बाद ही होती है और यह अनुभूति मनुष्य की आत्मा स्वयं प्रगट होकर कराती है |"

('आत्मेश्वर', बारहवें अनुष्ठान के संदेश, पेज 66)

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