स्त्री को दूसरा दर्जा देकर वह अपने ही जन्म को भूल रहा है यानी अपनी जड़ पर प्रहार कर रहा है। वह अपनी माँ को भूल रहा है। जो पुरुष अपनी माँ से अधिक अनुराग रखता है , वह कभी भी किसी स्त्री का अपमान नहीं कर सकता है।
भाग - १

*॥जय बाबा स्वामी॥*

आपके भीतर का 'मैं' जब तक जीवित है, तब तक ध्यान कभी भी नही लग सकता। *'मेरा'* ध्यान लग रहा है। *'मेरा'* ध्यान नही लग रहा है.... *'मुझे'* ध्यान की अवस्था  प्राप्त हुई है ... *मुझे* ध्यान की अच्छी अवस्था प्राप्त नही हुई है...अरे,  यह *'मैं'* कौन है ? इस *'मैं'* को छोड़ दो ।  विलीन कर दो। अच्छा हो रहा है, स्वामीजी की कृपा। अच्छा नही हो रहा है , स्वामीजी की कृपा। अपनी ईच्छा को ही मत बाँधो।

"स्वामीजी मुझे अच्छा ध्यान लगाओ।" क्यूँ लगाऊ ? जब तेरी स्थिती अच्छी हो जाएगी, माँगने की भी आवश्यकता नही होगी !  ध्यान कब लग गया, पता ही नही चलेगा। उसके लिये सुपात्र बनो। भीतर भूतकाल का जहर भरकर रखा हुआ है। रोज ध्यान करते हो, ग्रहण करते हो, जहर मे डालते हो ! वह भँवरा बेकार मे मेरा अमृत खराब कर रहा है। तो सबसे पहले जहर को निकाल कर फेको। ताकी मैं आपको उज्ज्वल भविष्य दे सकुँ।

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मधुचैतन्य जुलाई - 2005

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