गेरुए वस्त

आपने कार्यक्रम के दौरान गेरुए वस्त्र घारण  करना चाहिए तो कार्यक्रम जैसा अनुरूप आपका वेष भी होगा और इससे आपके कार्यक्रम को एक सकारात्मक वातावरण प्राप्त होगा। मैंने कहा , मैं वैसे ही लोगों को अनुभूति से बोलकर प्रभावित कर ही लेता हूँ, तो फिर अलग से गेरुए वस्त्र पहनने की क्या आवश्यकता है ? दूसरा , सदैव मुझे लगता है कि सभी साधक मुझे अपने जैसा ही समझें , तभी तो वे भी मेरे जैसा बनने का प्रयास कर सकते हैं। जैसे एक छोटे बच्चे के सामने मैं अगर दो स्टेप (पादानें ) चढकर बैठूँ और उसे मेरा जैसा ऊपर आने के लिए प्रेरित करूँ तो वह प्रेरित होगा और दो स्टेप चढ़ने का प्रयास करेगा क्योंकि मैं उसे करीब का लगूँगा और वह चढ़गा लेकिन अगर उसी छोटे बच्चे के सामने मैं २० ,स्टेप ऊपर जाकर बैठूँ और उसे अपनी ओर आमंत्रित करूँ तो वह सोचेगा , मैं तो इतना ऊँचा नहीं चढ़ सकता और वह एक स्टेप भी नहीं चढ़गा। मेरी मन से इच्छा यही है कि साधक यह ध्यान की पद्धति सीखें। और साधक यह ध्यान की पद्धति तभी सीखेंगे , जब उन्हें यह सरल लगेगी। मेरा ध्यान का शिविर लेने का उदेश लोगों को प्रभावित करना नहीं है और न ही मैं चाहता हूँ, लोग मुझे एकदम विशेष मनुष्य समझने लग जाएँ।  इससे मेरा ध्यान कस प्रचार करने का गुरुकार्य ठीक से संपत्र नहीं होगा।

भाग - ६ - ३१८/३१९

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