अहंकार और स्वाभिमान

हमारे इस बिगड़े हुए संतुलन को भी हम कभी भी समझ नहीं पाते हैं। हम  इससे भी अपना स्वाभिमान समझ लेते हैं।वास्तव में स्वाभिमान तो वह स्तर है, जो हमें जीने की प्रेरणा और प्रोत्साहन देता है, एक नया कार्य करने का उत्साह और ऊर्जा देता है। स्वाभिमान से हम सदैव प्रसन्न और सुखी रहते हैं। और हमारे स्वाभिमान अन्य किसी मनुष्य को कष्ट या दुःख नहीं देता है, लेकिन यही स्वाभिमान जब अहंकार का रूप ले लेता है , तो उससे हमारे आसपास के लोग दुःख होते हैं। हमारे अहंकार से दूसरा को कष्ट पहुँचता है। अहंकार और स्वाभिमान में एक सूक्ष्म, पतली-सी रेखा है , हम कब स्वाभिमान से अहंकार के क्षेत्र में आ गए , हमें हमारा पता भी नहीं चलता है।

भाग - ६ - ३२०/२१

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