समाधान आत्मा की शुद्ध भावना
समाधान तो आत्मा की शुद्ध भावना है,
फिर वह बाहर कैसे मिल सकता है ? औऱ
जो पाने की बात कर रहे हो, वह पाकर भी समाधान थोड़े मिलने वाला है।वह जो पाना चाहते हो, वह पाकर आसक्त्ति की आग और भड़केगी। ' और ', 'और 'पाने की इच्छा होगी । हमें आसक्त्ति को ''समाधान" से ही रोकना होगा ।यह चंचल चित्त "यह मिलना चाहिए "
कहकर भविष्य में ले जाता हैं। "यह मिलना चाहिए " मतलब "यह मिला नहीं है "और " यह मिला नहीं है " मतलब अतृप्ति,असमाधान । सब साथ में ही लगा रहता हैं। इसलिए जो मिला है, उसके लिए ईश्वर का आभार मानना चाहिए। और पाने की आसक्त्ति,लालसा नहीं करनी
चाहिए। क्योंकि " यह मिलना चाहिए " ,
ऐसा हम जब सोचते हैं,तब हम कभी
वर्तमान मे नहीं रहते हैं। और आध्यात्मिक
प्रगति तो वर्तमान में ही हो सकती हैं।"
हि. का.स.यो.👉(1)पेज 43👉H014
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