कोई भी अपेक्षा मत करो।आप मेरे जीवन का उदाहरण देखो। मैंने जीवन में कुछ भी अपेक्षा नहीं की। आज जीवन के उस मुकाम में पहुँचा हूँ जहाँ जीवन में पाने के लिए कुछ भी नहीं रहा। कुछ भी ...
* मेरे विचार में पति औऱ पत्नी गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिए होते हैं । दोनों की आपसी समझ से किए गए प्रयास वे अश्व हैं जो रथ को आगे बढ़ाते हैं । कौन -सा प...
नियमित ध्यान इसलिए आवश्यक है .. देखो , रोज हम वातावरण में धूमते हैं तो हमारे कपड़े गंदे होते हैं , हम गंदे होते हैं। हम नहाते हैं , स्वच्छ होते हैं , पवित्र होते हैं। तो शरीर को स्...
*ध्यानमार्ग में जब भीतर से ही आत्मसूख मिलने लग जाता हैं तो हम प्रत्येक परिस्थिति को हँसते -हँसते स्वीकार कर लेते हैं । हम सबमें राजी हो जाते हैं , यह ...
🌿🌹|| जय बाबा स्वामी ||🌹🌿 "नकारात्मक शक्तियों का मुख्य 'उद्देश' आपको सामूहिकता से 'अलग' करना है | ताकि वह आपका शिकार आसानी से कर सके | यह बिलकुल जंगल जैसा है | जंगल में शेर जब भी किसी ...
निसर्ग से समरस हो जाने के बाद मनुष्य में निसर्ग के 'गुण' आना प्रारंभ हो जाता है। निसर्ग का *पहला गुण* है - 'निर्विचारिता'। मनुष्य जैसे जैसे निसर्ग से समरस होता है , वैसे वैसे निसर...
आज तक सदैव ईश्वर ने , गुरुशक्तियों ने मुझे संभाला हैं औऱ आगे भी वे देखेगी .....वे ही सँभालेँगि ! जितना "मेरा ", " मैं " का भाव रहेगा , उतनी ही समस्याएं मेरी ...
अब बाद में उस मूर्ति को जो मूर्तिकार निर्मित करे वह मूर्तिकार भी आत्मसाक्षात्कारी होना चाहिए। यानी बनाने वाला मनुष्य भी आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह चैतन्य पूर्ण होगा तो ...
दूसरा , यहाँ एक बात समझने की आवश्यकता है। जो भी प्राण डालेगा, वह उस देवता के प्राण नहीं डाल सकता है। यानी मान लो , एक कृष्ण की प्रतिमा है और उस प्रतिमा में एक संत ने प्राणशक्ति ...
अगर मान लो , आप सदैव सकारात्मक विचार करो कि मेरी दुर्धटना ही कभी नहीं हो सकती है, तो आपका विचार आपके विश्वास में बदल जाएगा। और फिर उस विश्वास से एक आपके आसपास आभामण्डल बन जाएग...
अब हम अगला प्रयोग करने जा रहे हैं। हमारे भारत में मूर्ति पूजा का चलन है और मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का महत्त्व है। ये प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है और वह करने से क्या बदलाव ...
एक समय की बात है : एक हरा - भरा गाँव था | वहाँ कई तरह के वृक्ष थे | बरगद , पीपल , नीम, जामुन , आम , गुलमहोर जैसे वृक्षों से ग्रामपरिसर की हरितकांति को चार चाँद लग गए थे | गाँव लोग ...
शिष्य को अपने गुरु के करुणा के भाव को पकड़ना होगा । यह करुणा की भावना की लहर जब आती हैं , तब अपने भीतर के अस्तित्व को समाप्त करना होगा । क्यों की जब त...
एक समय की बात है : एक हरा - भरा गाँव था | वहाँ कई तरह के वृक्ष थे | बरगद , पीपल , नीम, जामुन , आम , गुलमहोर जैसे वृक्षों से ग्रामपरिसर की हरितकांति को चार चाँद लग गए थे | गाँव लोग ...
जीवन समस्या तथा उपलब्धियों का मिश्रण होता है। 'समर्पण ध्यानयोग प्रार्थनाधाम' समस्या के समाधान हेतु प्रार्थना सेवा प्रदान करता है। इस सेवा का लाभ विश्व का कोई भी व्यक्ति ...
हमारी संस्कृति में गुरु को परमात्मा का दर्जा दिया गया है और गुरु साक्षात् परब्रह्म कहा है। यह इसीलिए कहा है क्योंकि परमात्मा मानना मनुष्य की गुण ग्रहण करने की सर्वोत्त...
इस चक्र का संबंध आपके चित्त के साथ है। आपका चित्त जितना बाहर की ओर होगा उतना ही वह कमजोर होगा। और चित्त कमजोर हो जाने पर शरीर में एक आसंतुलन की स्थिति भी निर्माण हो जाएगी। यह ...
मैं आपको जो बोल रहा हूँ न , ध्यान करो , ध्यान करो , ध्यान करो ....क्यों बोल रहा हूँ? इसलिए बोल रहा हूँ कि अगर ध्यान करोगे तो आपके पूर्वजों के सात पीढियों तक , मेरे शब्दों को समझ लो थोड़...
यह एक "आत्मसंगत" की साधना हैं , यह जीवन में धीरे -धीरे रंग लाती हैं । एक आधा घंटा एकांत में ऐसे बैठो की आपकी १५-२० फीट में अन्य कोई भी मनुष्य न हो । यह आध...
आज भी प्रत्येक साधक की नस -नस को जानता हूँ , फिर भी मुझे कुछ ज्ञान नहीं हैं यही प्रदर्शन करता हूँ । अन्यथा मेरे सामने कोई साधक ही नहीं आएगा । क्योंकि साधक कितने ही बुरे हो , मैंन...
आश्रम तो आज से 20 साल पूवॅ ही एक राजा अपने 50 किलोमीटर में फैले टी गाडॅन में बनाने को तैयार था, लेकिन वह आश्रम तो बनता पर सामूहिकता में नहीं बनता। आश्रम सामूहिकता में निमाॅण हो, य...
गुरुदेव के चरण तो निमित है हमें झुकाने के लिए। हमारा किसी भी स्थान पर झुकना ही अधिक महत्वपूर्ण है। जिसके प्रति हमारे मन में प्रेम होता है, जिसके ऊपर हमारी सम्पूर्ण श्रद्धा ...