ध्यानमार्ग

*ध्यानमार्ग  में  जब  भीतर  से  ही  आत्मसूख  मिलने  लग  जाता  हैं  तो  हम  प्रत्येक  परिस्थिति  को  हँसते -हँसते  स्वीकार  कर  लेते  हैं । हम  सबमें  राजी  हो  जाते  हैं , यह  बात  भी  समाज  को  स्वीकार  नहीं  होती । समाज  सोचता  हैं --हम  सूखी  नहीं  हैं  तो  य़ह  कैसे  सदैव  सूखी  औऱ  प्रसन्न  रहता  हैं ? ध्यानमार्ग  में , भीतर  में  ही  परमात्मा  को  पा  लिया , य़ह  अनुभव  होता  हैं  तो  बाहर  की  परमात्मा  की  खोज  भी  बंद  हो  जाती  हैं । समाज  तो  बाहर  के  परमात्मा  को  ही  मानता  हैं , वह  तो  बाहर  ही  अलग -अलग   स्थानों  पर  भटकते  रहता  हैं ।

पूज्य गुरुदेव **
*🌹आशीर्वचन 🌹*

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