गुरुदेव के चरण तो निमित है
गुरुदेव के चरण तो निमित है हमें झुकाने के लिए। हमारा किसी भी स्थान पर झुकना ही अधिक महत्वपूर्ण है। जिसके प्रति हमारे मन में प्रेम होता है, जिसके ऊपर हमारी सम्पूर्ण श्रद्धा होती है, उस स्थान पर झुकना हमारे लिए आसान होता है। “झुकना” अपने अस्तित्व को मिटाने की एक कला है। यह जिसे आ गयी, बस उसका बेड़ा पार। यह लायी नहीं जा सकती है। यह कला है , क़ुदरती है। यह क़ुदरती रूप से ही आती है।
बाबा स्वामी
HSY 1 pg 110
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