निसर्ग से समरस हो जाने के बाद

निसर्ग से समरस हो जाने के बाद मनुष्य में निसर्ग के 'गुण' आना प्रारंभ हो जाता है।

निसर्ग का *पहला गुण* है - 'निर्विचारिता'। मनुष्य जैसे जैसे निसर्ग से समरस होता है , वैसे वैसे निसर्ग मनुष्य के शरीर का विचार रूपी कचरा बोले या गंदगी बोले , निसर्ग पहले दूर करता है।

निसर्ग का *दूसरा* गुण है - 'समानता'। निसर्ग किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करता है। निसर्ग मनुष्य को केवल मनुष्य ही मानता है ; जाति , धर्म , देश , भाषा , लिंग ये सब मनुष्य के बनाए हुए बँटवारे को निसर्ग नही समझता।

निसर्ग का *तिसरा गुण*है - अपनी एक निश्चित सीमा में ही रहना।

निसर्ग का *चौथा गुण* है- शक्तियों का विकेंद्रीकरण। निसर्ग के पास जो भी शक्तीयाँ विद्यमान होती हैं , निसर्ग सदैव वह बाँटते रहता है; शक्तीयाँ अपने पास नही रखता है।

*आत्मेश्वर(आत्मा ही ईश्वर है)*

*॥ बाबा स्वामी॥*

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