आशीर्वचन
आज भी प्रत्येक साधक की नस -नस को जानता हूँ , फिर भी मुझे कुछ ज्ञान नहीं हैं यही प्रदर्शन करता हूँ । अन्यथा मेरे सामने कोई साधक ही नहीं आएगा । क्योंकि साधक कितने ही बुरे हो , मैंने उन्हें अपनाया हैं । वह मेरे हैं , जैसे भी हैं । औऱ मुझे उन्हें लेकर चलना हैं । एक अंश के रूप में मैं प्रत्येक साधक के भीतर ही बैठा हूँ । वह अंश उस साधक की प्रत्येक खबर देते रहता हैं , यह बात साधक नहीं जानते हैं । जिस दिन आत्मसाक्षात्कार उन्होंने प्राप्त किया , उसी दिन से यह अंतरंग संबंध स्थापित हो गया हैं । मुझे लगता हैं , "ध्यान "का प्रदर्शन साधकों ने समाज में नहीं करना चाहिए औऱ "मैं साधक हूँ "यह अहंकार भी बिल्कुल नहीं करना चाहिए । यह दोनों बातें आसपास के लोगों का नकारात्मक चित्त आपके ऊपर लाती हैं । आप आपके परिवार में भी ध्यान करो तो चुपचाप करो । आपके ध्यान से दूसरे को तकलीफ नहीं होनी चाहिए । ध्यान को छुपाने का भी नहीं हैं , लेकिन सामने वाला पूछे नहीं तब तक बताने का भी नहीं हैं । आप सभी को खूब -खूब आशीर्वाद !
✍आपका
बाबा स्वामी
[मधुचैतन्य.न.दी.२०१७]
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