अर्जुन एक निखलस माध्यम

जब कर्ण के हाथ में (धनुष्य) नहीं था और हव अपने रथ का चक्का निकाल रहा था , तब युद्व के नियम के अनुसार उस पर वार नहीं किया जा सकता था । यह नियम अर्जुन को बहु मालूम था, फिर भी श्रीकुष्ण ने कहा-इसी समय वार कर। तो उसने कर्ण पर तीर चलाया और कर्ण मार गया। यह धटना यह याद दिलाती है कि धनुष्य-बाण भले ही अर्जुन के हाथों में थे , वे चलते तो श्रीकृष्ण की आज्ञा से थे। अर्जुन हाथों में लिए हुए था लेकिन उस धनुष्य-बाण को चला श्रीकृष्ण रहे थे। सदगुरु के प्रति शिष्य के संपूर्ण समर्पण का कितना अच्छा उदाहरण है कि अर्जुन ने अपने सदगुरु श्रीकृष्ण को परमात्मा मानते हुए अपना संपूर्ण समर्पन उनके प्रति कर दिया कि उसके हाथों से निकलनेवाले बाण भी श्रीकृष्ण की इच्छा से चलते थे। यानी अर्जुन केवल एक निखलस माध्यममाण था।

भाग -५

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