जीवन में सबकुछ सिखा नहीं जा सकता
जीवन में सबकुछ सिखा नहीं जा सकता है क्योंकि सीखने के लिए बहुत है और जीवन बडा छोटा है। इसलिए छोटे-से जीवन में बडा ज्ञान सीखने के लिए हमें सौंपना आना चाहिए , समर्पण करना आना चाहिए। जो आवश्यक है , वह खुद-ब-खुद सीख ही जाते हैं। सीख जाते हैं , कहने की अपेक्षा यह कहना चाहिए , खुद-ब-खुद आ जाता है।
'समर्पण' शब्द आत्मिक है , 'गुरु' शब्द आत्मिक है तो किए जानेवाले समर्पण का भाव भी आत्मिक ही होना चाहिए। 'समर्पण' शब्द का अर्थ - अपने-आपको शारीरिक रूप से संपूर्ण नष्ट कर आत्मिक रूप से अपने गुरु की आत्मिक शक्तियों में समाहित हो जाना है। समर्पण का अर्थ 'मैं' को हि सौंप देना है।
समर्पण करना और किए गए समर्पण के भाव को बनाए रखना , ये दोनो महत्वपूर्ण कार्य है। बनाए रखना अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि न बनाए रखनेपर पाया हुआ सब खो सकते हैं। इसीलिए समर्पण बनाए रखना अधिक महत्वपूर्ण होता है और यह निरंतर साधना की तरह रोज की जानेवाली प्रक्रिया है।
*हिमालय का समर्पण योग १*
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