प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा
दूसरा , यहाँ एक बात समझने की आवश्यकता है। जो भी प्राण डालेगा, वह उस देवता के प्राण नहीं डाल सकता है। यानी मान लो , एक कृष्ण की प्रतिमा है और उस प्रतिमा में एक संत ने प्राणशक्ति डाली तो वह अपनी प्राणशक्ति डालेगा , वह कृष्ण भगवान की प्राणशक्ति नहीं डाल सकता है। और फिर असमानता तो हो ही गई , रूप तो कृष्ण का और भीतर प्राणशक्ति उस संत की होगी । हमारे यहाँ गुरु को उनके समाधिस्थ होने के बाद ही जाना जाता है, क्योंकि हम सदैव भूतकाल में ही जीते हैं। गौतम बुद्ध ने अपने जीवनकाल में मूर्तिपूजा का विरोध किया तो भी आज विश्व में सबसे अधिक प्रतिमाएँ गौतम बुद्ध की हैं। यह कितना बड़ा विरिधाभास है! अब मान लो , गौतम बुद्ध ने अपने जीवनकाल में अपनी ही एक प्रतिमा बनाई होती और अपने ही प्राण उसमें डाले होते तो वह प्रतिमा आज दुर्लभ ही होती। क्योंकि गौतम बुद्ध का ही रूप और गौतम बुद्ध का ही भीतर का स्वरूप होगा। यानी प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करने वाले भी अधिकारी मनुष्य होना चाहिए तभी वह मूर्ति में प्राण डाल सकेगा।।
भाग - ६ - ३००/१
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