कोई भी अपेक्षा मत करो।

कोई भी अपेक्षा मत करो।आप मेरे जीवन का उदाहरण देखो। मैंने जीवन में कुछ भी अपेक्षा नहीं की। आज जीवन के उस मुकाम में पहुँचा हूँ जहाँ जीवन में पाने के लिए कुछ भी नहीं रहा। कुछ भी पाने की इच्छा नहीं है। सब हो गया। सब तृप्त हो गया, सब मिल गया। तो ऐसी स्थिति प्रत्येक साधक को मिले , मेरी इच्छा है। प्रत्येक साधक जीवन के उस स्थिति तक पहुँचे जहाँ जीवन में पाने के लिए कुछ भी बाकी ही न रह जाए। कुछ भी नहीं चाहिए। कुछ नहीं चाहिए। ऐसी स्थिति प्रत्येक साधक को प्राप्त होनी चाहिए। और ऐसी स्थिति प्रत्येक साधक को प्राप्त हो ये मेरी शुद्ध इच्छा है। लेकिन ये शुद्ध इच्छा रखके तब तक वो पूर्ण नहीं होगी जब तक आप अपेक्षा  छोड़करके ध्यान नहीं करोगे। आप न, तुरंत अपेक्षा को जोड़ लेते है। अपेक्षा के लिए ही ध्यान करते हो। अपेक्षा छोड़करके ध्यान करो न ! तो वो वास्तव में ध्यान होगा। उसको छोड़करके करो।

मधुचैतन्य - अंक : ३ -२०१८

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