करुणा की भावना की लहर
शिष्य को अपने गुरु के करुणा के भाव को पकड़ना होगा । यह करुणा की भावना की लहर जब आती हैं , तब अपने भीतर के अस्तित्व को समाप्त करना होगा । क्यों की जब तक अपना अलग अस्तित्व होगा , तब तक उस करुणा की लहर से एकरूपता स्थापित नहीं हो सकती हैं । आत्मा को अपने बूंद के अस्तित्व को भुलाकर अपना अस्तित्व सागर में समाहित करना होगा । यह शिष्य को स्वयं ही करना होता हैं । वह कार्य एकदम निजी हैं । वह प्रत्येक का प्रत्येक को स्वयं ही करना होता हैं ।
🔰 ही .का .स .योग - -१--
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