माध्यम को ही परमात्मा मानकर उसे ही सपूर्ण समर्पित हो जाओ

नई दिशा की प्रेरणा मिलने के बाद धीरे- धीरे मनुष्य के पापकर्म समाप्त होते हैं। लेकिन इस दिशा में चलते समय भी पूर्वकर्म अनुभूति का एहसास नहीं होने देते हैं क्योंकि अनुभूति कर्मबंधन से मुक्त्ति की ओर ले जाती है। इसीलिए एकमात्र मार्ग है , एकमात्र रास्ता है - जीवन में कभी भी , कहीं भी , किसी से भी अनुभूति प्राप्त हो उस माध्यम को ही परमात्मा मानकर उसे ही सपूर्ण समर्पित हो जाओ।

भाग - ६

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