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Showing posts from October, 2017

स्त्री

स्त्रियों में अपने परिवार के प्रति, अपने रीश्तेदारों के प्रति अधिक लगाव होता है। इसलिए भी वे उन्हें छोड़कर नहीं जा पाती हैं। और साथ-साथ त्याग की उदार भावना भी होती है; वे उस मार्ग पर जाने वाले की मदद भी करती हैं जिस मार्ग पर वे कभी न जा पाई हों।और यह सब शायद इसलिए भी होता है कि स्त्रियों में पुरुषों की तुलना में अहंकार का भाव कम ही होता है।समाज में पुरुष का जो स्थान  होता है,वही अहंकार का कारण होता है।यानी पुरुष होने का भाव आएगा तो पुरुष होने का अहंकार भी आएगा।पुरुष की अपेक्षा ध्यान में स्त्रियाँ जल्दी प्रगति कर सकती हैं क्योंकि पुरुष को प्रथम अपने ' पुरुष हूँ ' इस अहंकार पर नियंत्रण करना होगा।और इसीलिए समाज में आज भी कुछ कार्य ऐसे हैं जो पुरुष नहीं कर रहें हैं,वे कार्य केवल स्त्रियाँ कर रही हैं। लेकिन स्त्रियाँ अपना भी कार्य करती हैं और पुरुषों का कार्य भी करती हैं।यह सब हमारी समाजव्यवस्ता के कारण हुआ होगा।स्त्री और पुरुष के अंग भले ही अलग हों लेकिन भीतर की नाड़ियों और चक्रों के स्थानऔर संख्या समान होते हैं। अगर केवल उन्हें देखों तो आप जान नहीं सकते कि वे चक्र स्त्री के हैं या

चित्तशुद्धि

गुरुदेव की गुफा के आगे दाहिनी ओर एक जलप्रपात था। ऐसी ही एक सुबह थी। गुरुदेव ने कहा,"मैंने इसलिये तुम्हें उस जलप्रपात के पानी पर एकाग्रता करने के लिए कहा था क्योंकि पानी केवल शरीर को शुद्ध नहीं करता, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है, चित्त को भी शुद्ध करता है। और आध्यात्मिक प्रगति के लिए चित्तशुद्धि अत्यंत आवश्यक है। चित्तशुद्धि आध्यात्मिक प्रगतिरूपी भवन की आधार शिला हैं। बिना चित्तशुद्धि के आध्यात्मिक प्रगति संभव ही नहीं है। चित्तशुद्धि किए बिना आध्यात्मिक प्रगति की शुरुआत ही नहीं की जा सकती है। चित्तशुद्धि किए बिना हम हमारे काम के भी नहीं है और दूसरों के काम के भी नहीं हैं।"     हि. का. स. यो. पेज 42

गुरु से बड़ा गुरु का नाम है

गुरु  से  बड़ा  गुरु  का  नाम  है  और  गुरु  से  भी  बड़ा  गुरु  का  कार्य  है । गुरु  का  शरीर  नाशवान  है , पर  गुरुनाम  शाश्वत  है , गुरु  का  कार्य  शाश्वत्  है । । सदैव  शाश्वत  की  ओर  ध्यान  देना  चाहिए । ही .का .स .योग .      2/312

आत्मज्ञान का बीज

कई आत्माएं वर्तमान परिस्थितियां अनुकूल हो जाने पर आत्मज्ञान का बीज प्राप्त तो कर लेती है, पर भीतर से चित्त कहीं और होता है | इसलिए उसे अंकुरित नहीं कर पाती , और फिर तब तक वह बीज वही पड़ा रहता है ,जब तक उसे उपयुक्त वातावरण नहीं मिलता है | अब वह भीतर का वातावरण अनुकूल करना उसी आत्मा का स्वयं का कार्यक्षेत्र है | यह सब प्रक्रिया आपकी अपनी योग्यता पर निर्भर करती है | आत्मज्ञान का वृक्ष निर्मित होने में अनेक  जन्म भी लगते हैं , इसलिए तुम्हे केवल बीज बोने का कार्य करना है | बीज को अंकुरित कर ,उसका वृक्ष बनाना यह उस आत्मा का स्वयं का कार्यक्षेत्र होगा | हि.स.यो.१/२१०

Shree Vishwa Chakra Anushthan

The Shree Guru energies have organised the Shree Vishwa chakra Anushthan at the Rajasthan Samarpan Ashram at Aradka, Ajmer. Any Medium of the Shree Guru Energies can organise such a practicum only once in his lifetime. During this process the Medium establishes his very subtle energies in a special place through the medium of his physical body. Here the Shree Guru-energies have created a 'yog' (union of right time and place) and  established their energies in a golden Shree Chakra so that in future, the waves of consciousness of energy may spread all over the world from this place and any soul thirsting for spiritual progress may attain Self-realisation by visiting this place. The schedule for the establishment of energies is as follows: Date              Time 28/10/17     Morn 8 to 9 29/10/17     Morn 8 to 10 30/10/17     Morn 8 to 11 31/10/17     Morn 8 to 12 1/11/17       Morn 8 to 1 2/11/17       Morn 8 to 2 3/11/17       Morn 8 to 3 4/11/17       Morn 8 to 4

नव वर्ष दिन दांन्डी समर्पण आश्रम

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सुबह दांन्डी आश्रम मे साल मुबारक   के अवसर पर ध्यान का कायेक्रम हुआ

दीपावली के दिन समर्पण आश्रम

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समर्पण आश्रम दांडी समर्पण आश्रम दांडी... बुद्ध भगवान की प्रतिमा... समर्पण आश्रम दांडी... ध्यानखंड... समर्पण आश्रम दांडी... भोजनालय रंगोली समर्पण आश्रम दांडी... दीपक का गुरुकार्य करते समय गुरुशक्तियो ने अपनी उपस्थिति का अहसास करवाया...ॐ की उपस्थिति श्री  बाबा  स्वामी  धाम  मोगर  गोवा समर्पण आश्रम  अजमेर समर्पण आश्रम 

वसुबारस

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आज वसुबारस है .... बैल की पूजा करने का दिन । आज के दिन की शुरुआत गौशाला में बछडे व बछिया को तिलक कर गुढ़ खिला कर की ...बहुत अच्छा लगा ।

गुरुकार्य

मुझे  कभी  नही  लगता  की  मै  अकेली  हूँ । सदैव  लगता  है - - कोई  अज्ञात  शक्तियाँ  साथ  में  होती  ही  है । और  यह  भी  जानती  हूँ  की  उनकी  कृपा  मेरे  ऊपर  इसलिए  है  क्योँकि  आप  उनका  गुरुकार्य  कर  रहे  है । यानी  घर  का  एक  सदस्य  भी  गुरुकार्य  से  जुड़ता  है  तो  एक  सुरक्षा  कवच  सारे  परिवार  को  ही  प्राप्त  हो  जाता  है , यह  मेरा  अनुभव  है । इसलिए  मुझे  नही  लगता  की  यह  सब  मै  कर  रही  हूँ । यह  सब  आपके  गुरु  मेरे  माध्यम  से  करवा  रहे  है । पूज्या गुरुमाँ -स्वामीजी से ही .का .स .योग .5/255

अच्छे आभामंडल का प्रभाव सभी प्रकार के पशु-पक्षियों को आकर्षित करता है।

ये पशु-पक्षी भी उस आभामंडल का आनंद लेते है।अच्छे आभामंडल का प्रभाव सभी प्रकार के पशु-पक्षियों को आकर्षित करता है। यही कारण है कि जिस स्थान पर सुरक्षितता अनुभव होती है, पक्षी उसी स्थान पर अपने घोंसले बनाते हैं। अच्छे आभामंडल के प्रभाव में प्राणी को सुरक्षितता अनुभव होती है और प्राणी को उस स्थान पर अच्छा लगता है,इसलिए ध्यान किसी भी स्थान पर बैठकर नहीं करना चाहिए। इसलिए सदैव सद्गुरु-सानिध्य मै ध्यान-साधना सर्वश्रेष्ठ होती हैं।     हि. का. स. यो.👉(1)पेज 41👉011

श्री विश्वचक्र अनुष्ठान

श्री गुरुशक्तीयों ने राजस्थान समर्पण आश्रम अरडका अजमेर राजस्थान में श्री विश्वचक्र अनुष्ठान का आयोजन किया है। श्री गुरूशक्तीयों का कोई भी माध्यम अपने जिवन काल में इसप्रकार का आयोजन जीवन मे केवल एक ही बार कर सकता है। इसमें माध्यम अपने शरीर के माध्यम से अपनी अतिसूक्ष्म उर्जा  को कीसी स्थान विशेष में स्थापित करता है। यहाँ पर श्री गुरूशक्तीयों ने सोने से बने एक श्री चक्र में स्थापित करने का योग किया है ताकि भवीष्य में इस स्थान से उर्जा की चैतन्य लहरीयाँ समुचे विश्व में फैलें और जिसे भी आध्यात्मीक उन्नती की प्यास जगे उसे यहाँ से आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो सके।  स्थापना के साधना का समय इस प्रकार से रखा है। दिनांक               समय २८/१०/१७।        सुबह ८से९ २९/१०/१७।        सुबह ८से१० ३०/१०/१७।        सुबह ८से११ ३१/१०/१७।         सुबह ८ से१२ १/११/१७।           सुबह ८ से१ २/११/१७।            सुबह ८ से२ ३/११/१७।             सुबह ८ से३ ४/११/१७।             सुबह ८ से४      यह स्थान एक साधना स्थली बने और राजस्थान में इस साधना स्थली से सुख और समृदधी आये और यह स्थान आत्म शांन्ती का केंद

सदगुरु आशीर्वाद देकर मुक्त नही होते

" शिष्य  आशीर्वाद  लेकर  छूट  जाता  है  लेकिन  सदगुरु  आशीर्वाद  देकर  मुक्त  नही  होते , आशीर्वाद  पूर्ण  फलीभूत  होने  तक  वे  चेतना  के  रूप  में  शिष्य  के  सदैव  साथ  ही  होते  है । " पूज्य  स्वामीजी ही .का .स .योग      5/275

गुरुशक्तियाँ मेरे साथ -साठ चलते ही रहती है ।

गुरुशक्तियाँ  मेरे  साथ -साठ  चलते  ही  रहती  है । जैसे  बादल  आ  जाने  पर  सूर्य  तो  होता  है  पर  दिखाई  नही  देता , ठीक  इसी  प्रकार , ये  सदैव  साथ  रहती  है , पर  भिडरुपि  बादल  आ  जाने  पर वे  दिखाई  नही  देती  है । और  जैसे  ही  भिडरुपि  बादल  छंट  जाते  है , दिखाई  देने  लग  जाती  है । पूज्य स्वामीजी ही .का .स .योग     5/275

गुरुशक्तियाँ मेरे साथ -साठ चलते ही रहती है ।

गुरुशक्तियाँ  मेरे  साथ -साठ  चलते  ही  रहती  है । जैसे  बादल  आ  जाने  पर  सूर्य  तो  होता  है  पर  दिखाई  नही  देता , ठीक  इसी  प्रकार , ये  सदैव  साथ  रहती  है , पर  भिडरुपि  बादल  आ  जाने  पर वे  दिखाई  नही  देती  है । और  जैसे  ही  भिडरुपि  बादल  छंट  जाते  है , दिखाई  देने  लग  जाती  है । पूज्य स्वामीजी ही .का .स .योग     5/275

प्रार्थना

गुरुदेव , मुझे सत्य मार्ग पर रखो - केवल इसी प्रार्थना के साथ आगे  बठिए। गुरु माँ

गुरु एक माली के समान होता है |

" गुरु एक माली के समान होता है | एक छोटी- सी नर्सरी में वह एक छोटे-से बीज को लगाता है | बीज से पौधा बनने तक वह राह देखता है | बीज को खाद देता है, पानी देता है | जब बीज से पौधा बन जाता है, तब उस पौधे को किसी नए , अच्छे स्थान पर स्थानांतरित करता है , जहाँ पर पौधा वृक्ष बनकर विकसित हो सके , ऐसे स्थान पर वह सदैव अपने पौधे की प्रगति चाहता है | कभी माली अपने पौधों की कटाई भी करता है , तो भी इसी उदेश्य से कि पौधा अच्छे तरीके से विकसित हो सके | यानी माली की क्रियाएँ कुछ भी हों , माली का उदेश्य सदैव पौधे को विकसित करना है.....  हि.स.यो-१ पृ-७६

तुम्हारे  माध्यम से इस आत्मज्ञान को लाखों लोग प्राप्त करेंगे

तुम्हारे  माध्यम से इस आत्मज्ञान को लाखों लोग प्राप्त करेंगे , जो व्यक्ति तुम्हारे सामने आ गया , वह इसके योग्य ही है , अन्यथा वह सामने आएगा ही नहीं | और सामने आया भी तो वह टिकेगा नहीं | तुम तो सागर हो | तुम तक पापी व पुण्यवान दोनों पहुँच सकते हैं और तुम सागर की तरह दोनों को ह्रदय से अपनाओगे | पर टिकेगा वही जो आत्मज्ञान का बीज पाने योग्य होगा | आत्मज्ञान का बीज प्राप्त करना और उस बीज को अंकुरित करना ,इन दोनों के बीच काफी समय लगता है | कई बार तीन चार जन्म भी लग जाते है | हि.स.यो.१/२१०

मोक्ष ध्यान की सर्वोच्च अवस्था है

मोक्ष ध्यान की सर्वोच्च अवस्था है और वह स्थिति मिलने के बाद हम शरीर में ही होते है पर शरीर से आसक्त नहि होते। हम में शरीर के विकार नहि होते, शरीर के दोशो से हम प्रभावित नहि होते,हम शरीर में रहकर भी शरीर के दोषों से मुक्त रहते है। HSY 5 pg 49

सभी स्थान ध्यान करने के योग्य नहीं होते हैं।

साधक को ध्यान-साधना करते समय स्थान का सदैव 'ध्यान' रखना चाहिए। सभी स्थान ध्यान करने के योग्य नहीं होते हैं। कई स्थानों पर बैठकर किया गया 'ध्यान' साधक के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता हैं।         "बुरे कर्म मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए करता है, पर बुरे कर्म के कारण वह मनुष्य तो बुरा बनता ही है, वह उस स्थान को भी बुरा कर देता है जिस स्थान पर बैठकर उसने वह बुरा कार्य किया है।तो उस निश्चित स्थान पर उस बुरे कार्य का प्रभाव बन जाता है। और ठीक उसी स्थान के ऊपर, आकाश में उस ख़राब कार्य का आभामंडल तैयार हो जाता है।"         "जब कोई अच्छा व्यक्ति भी उस स्थान पर पहुँचता है, तो स्थान का ख़राब प्रभाव और उसी स्थान के खराब आभामंडल से वह अच्छा व्यक्ति भी आहत होता है।इसलिए सभी स्थान ध्यानकरने योग्य नहीं होतें हैं ।"     हि. का. स. यो.👉(1)पेज 40👉010

सदगुरु इन हजारों -लाखों आत्माओं का पालनहार रहता है ।

हजारों  लाखों  आत्माएँ  जन्मों -जन्मों  से  अपने  सदगुरु  के  साथ  जुडी  होती  है । इसी  कारण  "सदगुरु " इन  हजारों -लाखों  आत्माओं  का  पालनहार  रहता  है । इसलिए  इसके  साथ  उन  आत्माओं  की  सामूहिकता  होती  है । और  इस  सदगुरु  के  माध्यम  से  हम  इन  लाखों  आत्माओं  के  साथ  जुड़  सकते  है । और  जुड़ने  का  रास्ता  यह  है - इस  उच्च  स्तर  पर  जुड़े  हुए  आत्माओं  की  सामूहिकता  पाना  और  यह  उच्च  स्थिति  की  आत्माओं  की  सामूहिकता   सदगुरु  के  चरणों  में  होती  है । ही .का .स .योग .      1/39

गायत्री मंत्र

आत्मज्ञान के बारे में जैसा है,बिल्कुल वैसा ही गायत्री मंत्र के बारे में है। आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए कुण्डलिनी-शक्त्ति -जागृति की आवश्यकता होती है और वह एक स्त्रीशक्त्ति है और उसी स्त्री शक्त्ति को पुरुष ने स्त्रियों से दूर रखा है। गायत्री स्वयं एक स्त्री देवता है और उसकी आराधना से स्त्रियों को ही दूर रखा जाता है,यह बचपन से ही बड़ा विचित्र लगता था। पुरुष समाज द्वारा,अपना प्रभुत्व स्त्रियों पर हो,इसी के लिए सारे प्रयास किए जाते हैं।और इस बात का पता अभी तक स्त्रियों को नहीं है। पुरुषों के ध्यान में यह बात पहले से आ चुकी है कि स्त्री बेहतर है। हिमालय में जाकर सालों तपस्या करके आत्मस्वरूप की स्थिति प्राप्त हुई और वह स्थिति प्राप्त होने के बाद जब शरीर के बाहर  अपने ही शरीर को देखा,तब जाना--स्त्री हो या पुरुष ,दोनों की आत्मा एक जैसे ही होती है। और पुरुष सदा पुरुष का ही शरीर धारण करे और स्त्री प्रत्येक जन्म में स्त्री ही बने,यह आवश्यक नहीं है। आत्मा अपनी इच्छानुसार स्त्री या पुरुष का शरीर धारण करती है। लेकिन यह सब उन्होंने (हिमालय के योगियों ने) तब जाना ,जब उनका शरीर किसी को यह कहने लायक 

शिष्य में भी गुरु बनने की संभावनाएं

जिस प्रकार से प्रत्येक बीज में वृक्ष बनने की संभावनाएं छुपी होती ही है , वैसे ही प्रत्येक शिष्य में भी गुरु बनने की संभावनाएं छुपी होती हैं | और परमात्मा की कृपादृष्टि आप पर हो , तो ही ये घटित हो पाता है | स्वविचार युक्त हि.स.यो.१ /२०९

प्रार्थना

" गुरुदेव "मैं  सूर्य  के  रूप  में  आपको  वंदन  कर  रहा  हूँ । अब  मैने  मेरा  सारा  अस्तित्व  ही  आपको  समर्पित  कर  दिया  है । अब  मेरी  निजी , ऐसी  कोई  प्रार्थना  नही  है । अब  मेरा  कोई  अस्तित्व  ही  नही  है , तो  फिर  निजी  प्रार्थना  कैसे  हो  सकती  है ?मै  तुम्हारी  लीला  समझने  में  असमर्थ  हूँ । अब  तुम  जैसा  चाहो , वैसा  ही  हो । जीवन  की  सभी  घटनाएँ  आपकी  इच्छानुसार  हो , बस  यही प्रार्थना  है । पूज्य  स्वामीजी ही .का .स .योग      2/28

गुरुतत्व 

गुरुतत्व  एक  शक्ति  है  जो  विश्व  में  सकारात्मक  रूप  मे  बहती  रहती  है । व्यक्ति  तो  उसके  माध्यम  है , वे  समय  के  अनुसार  बदलते  रहते  है । गुरुतत्व  कभी  नही  मरता  है । गुरुतत्व  शिष्य  के  रूप  में  सदैव  जीवित  होता  है । मरता  है  शरीर । तो  जो  शरीर  मरता  है  उसका  मोह  क्यों ? ही .का स  योग   1/268

परमात्मा

* कोई  भीतर  पहुँचा  हुआ  माध्यम  ही  हमे  भीतर  के  परमात्मा  तक  ले  जा  सकता  है । * जो  शरीर  परमात्मामय  हो  जाते  है  याने  जो  शरीर  अपना  अस्तित्व  खो  देते  है , जो  एक  से  अनेक  हो  जाते  है , ऐसे  शरीर  परमात्मा  के  माध्यम  बन  जाते  है । * ऐसे  माध्यमों  के  सानिध्य  मे  परमात्मा  की  अनुभूति  होती  है । परमात्मा  का  एहसास  होता  है । परमपूज्य बाबा स्वामीजी   [ आध्यात्मिक सत्य ]

सजीव ज्ञान पाना गुरुकृपा है

सजीव  ज्ञान  पाना  गुरुकृपा  है  और  यह  सजीव  ज्ञान  बाँटना  ही  सही  अर्थ  में  गुरुदक्षिणा  "है । और  ध्यान -साधना  भी  एक  प्रकार  की  कला  है  जो  अनायास  ही  प्राप्त  हो  जाती  है । परमात्मा  की  कृपा  कभी  भी  प्रयत्न  से  प्राप्त  नही  होती  है । बस , जब  उसकी  करुणा  हो  जाए  तो  ही  प्राप्त  हो  सकती  है । और  करुणा  का  पात्र  बनने  के  लिए  आत्मीय  योग्यता  आवश्यक  है ही .स .योग .1/148

गुरु ही ब्रह्म है ।

॥गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु ॥ ॥गुरु देवों महेश्वर :॥ ॥गुरु साक्षात पारब्रह्म ॥ ॥तस्मै श्री गूरूवे नम :॥      गुरु  ही  ब्रह्म  है । एकमात्र  उनकी  ओर  लक्ष  रखने  से  ब्रह्म  की  प्राप्ति  होगी ।गुरुजी  पृथ्वी  पर  परमात्मा  का  प्रतिबिंब  है ।सेवा  उस  सगुण  गुरु  की  ही  हो  सके ।आत्मा  को  भी  गुरु  कहते  है । सन्त श्री अखा भगत