"जैन मुनि शिविर" में प्राप्त हुए महत्वपूर्ण वचन

1) आत्मा प्रत्येक जन्म के अंदर  धमँ बदलते रहती है |
2) सब प्रोब्लेम की जड है - अपेक्षा |
3)  पुरूष तना है तो स्त्री जड है |
4)  हम अगर हमारे अंदर की स्थिति अच्छी करते हैं तो बाहर की स्थिति अच्छी  हो जाएगी |
5)ध्यान में शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है |
6) मनुष्यधमँ का बोध हमें तब होता है हमारा आत्मधमँ जागृत  होता है |
7)  किसी भी अपेक्षा से ध्यान  मत करो | कोई भी  मित्रता स्वाथँ से करते हैं तो मित्रता तूट जाएगी |
8)  प्रत्येक मनुष्य के अंदर प्रगती की संभावना  छुपा हुई होती है |
9) सभी ध्यान  पद्धतियों का एक ही ऊदेश है - आत्मभाव को वृद्धि गत करना |
10) आत्मभाव  वृध्धिगत करने से हमारा हमारे शरीर पर संपूर्ण नियंत्रण हो जाता है |
11) मेरे को जैन मुनियों के मोती मिले हैं,  बस , धागे से पुराने की बात है |
12)  ध्यान  आ जाएगा , सब दोष हो जाएँगा |
13) निभँय रहो,  स्वामीजी साथ में है,  कुछ नही होगा |
14) संथारा करने के लिए  शरीर स्वस्थ होना चाहिए |
15) सब मंत्र अच्छे हैं , हमको उसकी फ्रिक्वन्सी के साथ  मेच होना चाहिए |
16) अभिमान तुम्हारे कायँ को प्रोत्साहित करता है | तुमसे किसी दूसरे को तकलीफ  होती है वह अहंकार  |
17) अच्छा  लगना यह परमात्मा  की पहली अनुभूति  है |
18) कला के माध्यम से,  गाने  के माध्यम से,  संगीत  के माध्यम  से भावपक्ष को मजबूत  किया  जा सकता है |

मधचैुतन्य  :- मार्च अप्रिल 2015
पेज नं:- 9

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