गायत्री मंत्र

आत्मज्ञान के बारे में जैसा है,बिल्कुल वैसा ही गायत्री मंत्र के बारे में है। आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए कुण्डलिनी-शक्त्ति -जागृति की आवश्यकता होती है और वह एक स्त्रीशक्त्ति है और उसी स्त्री शक्त्ति को पुरुष ने स्त्रियों से दूर रखा है। गायत्री स्वयं एक स्त्री देवता है और उसकी आराधना से स्त्रियों को ही दूर रखा जाता है,यह बचपन से ही बड़ा विचित्र लगता था। पुरुष समाज द्वारा,अपना प्रभुत्व स्त्रियों पर हो,इसी के लिए सारे प्रयास किए जाते हैं।और इस बात का पता अभी तक स्त्रियों को नहीं है। पुरुषों के ध्यान में यह बात पहले से आ चुकी है कि स्त्री बेहतर है। हिमालय में जाकर सालों तपस्या करके आत्मस्वरूप की स्थिति प्राप्त हुई और वह स्थिति प्राप्त होने के बाद जब शरीर के बाहर  अपने ही शरीर को देखा,तब जाना--स्त्री हो या पुरुष ,दोनों की आत्मा एक जैसे ही होती है। और पुरुष सदा पुरुष का ही शरीर धारण करे और स्त्री प्रत्येक जन्म में स्त्री ही बने,यह आवश्यक नहीं है। आत्मा अपनी इच्छानुसार स्त्री या पुरुष का शरीर धारण करती है। लेकिन यह सब उन्होंने (हिमालय के योगियों ने) तब जाना ,जब उनका शरीर किसी को यह कहने लायक  ही नहीं रह गया था। क्योंकि वह प्राप्त हुआ ज्ञान देने के लिए  वे किसी के भी पास नहीं जा सकते थे।उन्होंने एक ही स्थान पर ध्यान करके  अपनेआपको  ही एक स्थान बना लिया था और वे ऐसे दुर्गम स्थान पर बैठे थे कि कल्पना में भी कोई मनुष्य वहाँ पर पहुँच नहीं सकता था। पर हाँ,जो संत-महात्मा यह जानने की स्थिति में पहुँचकर भी समाज में थे या समाज के संपर्क में थे,उन्होंने इस दिशा में अवश्य कार्य किया।...

हि.स.यो-४               
पु-३६९

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