आत्मज्ञान का बीज
कई आत्माएं वर्तमान परिस्थितियां अनुकूल हो जाने पर आत्मज्ञान का बीज प्राप्त तो कर लेती है, पर भीतर से चित्त कहीं और होता है | इसलिए उसे अंकुरित नहीं कर पाती , और फिर तब तक वह बीज वही पड़ा रहता है ,जब तक उसे उपयुक्त वातावरण नहीं मिलता है | अब वह भीतर का वातावरण अनुकूल करना उसी आत्मा का स्वयं का कार्यक्षेत्र है | यह सब प्रक्रिया आपकी अपनी योग्यता पर निर्भर करती है | आत्मज्ञान का वृक्ष निर्मित होने में अनेक जन्म भी लगते हैं , इसलिए तुम्हे केवल बीज बोने का कार्य करना है | बीज को अंकुरित कर ,उसका वृक्ष बनाना यह उस आत्मा का स्वयं का कार्यक्षेत्र होगा |
हि.स.यो.१/२१०
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