सभी स्थान ध्यान करने के योग्य नहीं होते हैं।
साधक को ध्यान-साधना करते समय स्थान का सदैव 'ध्यान' रखना चाहिए। सभी स्थान ध्यान करने के योग्य नहीं होते हैं। कई स्थानों पर बैठकर किया गया 'ध्यान' साधक के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता हैं।
"बुरे कर्म मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए करता है, पर बुरे कर्म के कारण वह मनुष्य तो बुरा बनता ही है, वह उस स्थान को भी बुरा कर देता है जिस स्थान पर
बैठकर उसने वह बुरा कार्य किया है।तो उस निश्चित स्थान पर उस बुरे कार्य का प्रभाव बन जाता है। और ठीक उसी स्थान के ऊपर, आकाश में उस ख़राब कार्य का आभामंडल तैयार हो जाता है।"
"जब कोई अच्छा व्यक्ति भी उस स्थान पर पहुँचता है, तो स्थान का ख़राब प्रभाव और उसी स्थान के खराब आभामंडल से वह अच्छा व्यक्ति भी आहत होता है।इसलिए सभी स्थान ध्यानकरने योग्य नहीं होतें हैं ।"
हि. का. स. यो.👉(1)पेज 40👉010
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