गुरु का शरीर नीमीत्य है
गुरु का शरीर नीमीत्य है चैतन्य का जहाँ आप झुके की उसका रास्ता बन गया ।फ़िर आप चाहे ,न चाहे आप पर चैतन्यरूपी अमृत बस बरसता ही जाएगा ।गुरु के आत्मा के सामने झुके बिना ,गुरु स्वयं शरीर से कूछ भी नही दे सकता है ।गुरु से लेना पड़ता है झुककर ।जिसे झुकना आ गया ,वह खुद ही पा लेगा ।
ही .का .स .योग .
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