पुरुष का निर्माण ही स्त्री से होता है तो भला पुरुष को श्रेष्ट कैसे
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि एक माँ अपने पर अधिपत्य करनेवाले पति जैसे एक और पुरुष का निर्माण कर सकती है। और जब पुरुष का निर्माण ही स्त्री से होता है तो भला पुरुष को श्रेष्ट कैसे कहा जा सकता है?ऐसा कहना मनुष्यता का अपमान है। बल्कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का चित्त अधिक शुध्द एवं सशक्त होता है। पुरुषों का चित्त प्रायःअनियंत्रित और कमजोर होता है। इसीलिए,कोई स्त्री मेरे चित्त को दूषित न कर दे,कोई मेरी ध्यान साधना भंग न कर दे,यह भय उसे सदैव लगा रहता है। वह स्त्री से इतना डरता है कि भागकर यहाँ, हिमालय में आकर छिपता है। जबकि ऐसा भय कभी किसी स्त्री में मैंने नहीं देखा। किसी स्त्री को ,पुरुष मेरा चित्त दूषित करेगा, मेरा किसी पुरुष में चित्त जाएगा,मेरे आसपास पुरुष नहीं होना चाहिए,ऐसा कहते हुएआज तक मैंने मेरे जीवन में नहीं देखा। तो ऐसा विरोधाभास क्यों है कि पुरुष ही कमजोर है और वह स्त्री को कमजोर कह रहा है,वह आध्यात्मिक प्रगति में बाधक है,ऐसा कह रहा है? क्यों? जब कभी किसी बूढ़े को अपने माँ के बारे में बातें करते या माँ को याद करते हुए देखता था तो मैं सोचता था--अब ९०सालों के बाद वह इतनी पुरानी बात क्यों कर रहा है?मुझे बड़ा विचित्र लगता था कि वह बूढ़ा उम्र में ९० साल का हो गया होगा लेकिन वह आज भी अपने-आपको बच्चा ही समझ रहा है। ऐसे इसीलिए होता है कि एक स्त्री की उँचाई उसके जीवन में इतनी अधिक होती है कि वह उस स्त्री की ऊँचाई के सामने अपने-आपको बौना समझता है,अपने-आपको छोटा समझता है,अपने-आपको बच्चा समझता है। इसका अर्थ यही जान पड़ता है कि पुरुष कितना भी बड़ा हो जाए,अपनी माँ रूपी स्त्री के सामने बौना रहेगा,बच्चा ही रहेगा।...
हि.स.यो-४
पु-३६३
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