पानी के सानिध्य में

इस प्रकार से काफी दिनों तक ब्रह्मानंद
गुरूदेव ने मेरा चित्त उस पानी के प्रवाह
पर रखा था। और इन दिनों में मैंने महसूस
किया - मुझे विचार आने बंद हो गए हैं ।
मैं धीरे - धीरे बाकी जगत को भूल गया
और एक पानी का झरना ही मेरा संपूर्ण
जगत हो गया। और यह झरना बह रहा
था। रोज नए-नए पानी के कणों के साथ
चित्त की एकाग्रता होने से चित्त धीरे-धीरे
शुद्ध होता चला जा रहा था। या यूँ कहें कि     
झरने के पानी के सानिध्य में चित्त धुल रहा
था। चित्त भी दिन-प्रतिदिन शुद्ध, और शुद्ध
हो रहा था ।
   
हि. का.स.यो.👉(1)पेज 32👉002

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