गुस्सा करना

गुस्सा करना एक क्षणिक भावना है। वह किसी विशेष परिस्थिति में अभिव्यक्त हो जाती है लेकिन वहीभावना अगर किसी व्यक्ति के बारे में सतत रखी जाए तो  वह वैर का रूप ले लेती है। और वैरभाव रखना बहुत ही खराब होता है क्योंकि उसमें हम किसी भी स्तर तक जा सकते हैं और कोई भी पाप या बुरा कार्य अपना हाथ से घटित हो सकता है। इसीलिए जीवन में किसी के ऊपर गुस्सा किया तो  एक बार चल सकता है लेकिन अपने मन में किसी के भी प्रति वैरभाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि वैरभाव अगर हमने रखा तो हम सदा उसका बुरा ही चाहेंगे और हमारे चाहने से उसका तो बुरा होगा नहीं लेकिन सतत उसके प्रति बुरा भाव हम रखेंगे तो  हम हमारे चित्त को कमजोर और दूषित करते रहेंगे। और ऐसा करने से हम परमात्मा की शक्त्ति से दूर जाते रहते हैं। इस रास्ते पर चलने वाले लोग  कई बार मृत आत्माओं (देहविहीन आत्माओं) तक भी पहुँच जाते हैं और  मृत आत्माएँ भी ऐसी चित्त वाले व्यक्तियों को खोजते ही रहती हैं।  मृत आत्माओं  का शरीर में प्रवेश सदैव आज्ञा चक्र से होता है। और वैर भाव से आज्ञा चक्र दूषित होता है,कमजोर होता है और ऐसे कमजोर आज्ञा चक्र के कारण मृत आत्माओं के शरीर में  घुसने का दरवाजा आसानी से खुल जाता है।प्रायः वैरभाव वाले व्यक्त्तियों में मृत आत्माएँ आकर वास करती हैं क्योंकि व्यक्त्ति वैरभाव से इतना ग्रस्त हो जाता है कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है,इसका संपूर्ण ज्ञान ही समाप्त हो जाता है और फिर वह  ऐसे बुरे-बुरे कार्य करता है जो  वह जीवन में शायद कभी नहीं  करता।...

हि.स.यो-४                
पु-३६२

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