ज्ञान को बाँटने मे ही सार्थकता हैं

उस दिन मैंने भी सोचा,"अगर परमात्मा से कभी मुझे ज्ञानरूपी रोटियाँ अधिक मात्रा में मिलती हैं, तो मैं भी मेरे जीवन मे उन भूखे व्यक्तियों की खोज करूँगा, उन्हें
ढूंढूंगा औऱ प्रेम से परमात्मा की ज्ञानरूपी रोटी उन्हें खिलाऊँगा और आत्म-आनन्द प्राप्त करूँगा।क्योंकि आवश्यकता से अधिक ज्ञान की मुझे भी कोइ आवश्यकता नहीं है, फिर उस ज्ञान को बाँटने मे ही
सार्थकता हैं"।
 
हि. का. स. यो.👉(1)पेज36👉006

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