मोतियों की माला

प्रत्तेक  आत्मा  ही  सदगुरु  के  प्रति  समर्पित  होती  है  और  उसकी  चेतना  का  माध्यम  बनती  है , अपने -आपको  समर्पित  करती  है । यानी  आत्मा  सदगुरु  को  समर्पित  है  और  सदगुरु  आत्माओं  को  सामूहिक  रूप  मे  समर्पित  है । क्योकि  सदगुरुरूपी  धागा  सारे  मोतीरूपी  आत्माओं  को  समर्पित  होता  है । यानी  साधक  और  सदगुरु , दोनो  ही  एक -दूसरे  को  समर्पित  होते  है । लेकिन  मोती  की  माला  में  मोती  ही  दिखते  है , धागा  कभी  नही  दिखता । लेकिन  इसका  अर्थ  ये  नही  है  की  वह  होता  नही  है ; होता  है  लेकिन  दिखता  नही  है क्योंकि  वह  मोतियों  के  भीतर  होता  है । वैसे  ही  सदगुरु  भी  साधकों  के  भीतर  ही  होता  है  लेकिन  दिखता  नही  है , सूक्ष्म  रूप  से  होता  है ।

श्री सदगुरु बाबा स्वामीजी
ही .का .स .योग 5/380

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