देवत्व और दानवता
" वास्तव में, मनुष्य में देवत्व और दानवता, दोनों होते हैं। वह बिच का होता है। अब अगर मनुष्य ऊपर की ओर प्रयत्न करे तो देवत्व प्राप्त कर सकता है। और नीचे की ओर जाना चाहे तो उसके लिए बहुत प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती, सामान्य प्रयास से भी वह दानव बन सकता है। मनुष्य को जैसी संगत मिलती है, वैसी वह यात्रा कर सकता है। लेकिन प्रत्येक मनुष्य को समान अवसर उपलब्ध होता हैं। प्रत्येक मनुष्य, वह चाहे तो, आत्मिक प्रगति कर सकता है। सब हमारी दिशा
की ऊपर ही निर्भर है- हम किस ओर यात्रा करते हैं।"
" इस सारे विश्व का छोटा-सा अंश हम में है। जिसे 'परमात्मा' कहते हैं, वह सभी में विद्यमान है। और इस विश्व का भी छोटा-सा स्वरुप एक पिंड के रुप में मनुष्य में है। मनुष्य परमात्मा का भी प्रतिनिधि है और विश्व का भी प्रतिनिधि है। परमात्मा को पाने के लिए भी आत्मा को पाना होगा और विश्व में शांति चाहिए, विश्व में कल्याण चाहिए तो भी प्रथम स्वयं शांति प्राप्त करनी होगी, प्रथम अपना, आत्मा का कल्याण करना होगा।"
हि.स.योग.४, पेज. ३९६.
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