हे परमात्मा तू ही तू है

यह  एक  चक्र  है । उस  चक्र  की  शुरुआत  भी  तू  ही  है  और  ऐसे  चक्र  का  अंत  भी  तू  ही  है । इस  चक्र  में , देने  का  भाव  जगानेवाली  शक्ति  भी  तू  ही  है  और  स्वीकार  करानेवाली  शक्ति  भी  तू  ही  है । ये  देनेवाले  और  ये  पानेवाले  सारे  निमित्त  है । उस  गोलाकार  चक्र  के  चक्र  ही  गोलाकार  है । इसमें  गोलाकार  के  अलावा  अलग  से  कोई  कोना  नही  है  क्योंकि  वास्तव  में , कोई  कोना  है  ही  नही । सब  तू  ही  तू  है । तू  ही  देनेवाला  है , तू  ही  पानेवाला  है , मै  तो  माध्यम  हूँ । अंत  में , तेरा  तुझको  ही  समर्पित  है ।

ही .का .स .योग 2/191

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