बडे महाराजश्री की वाणी

बडे महाराजश्री की वाणी सुनाई देने लग गई।

" गुरु और शिष्य का रिश्ता सबसे पवित्र रिश्ता होता है और यह जन्मों-जन्मों तक चलते ही रहता है। यह तब तक नहीं समाप्त होता, जब तक दोनों को मोक्ष नहीं मिल जाए। प्रथम तो गुरु मोक्ष की स्थिति पाता है और बादमें वह शिष्य का इंतजार करता है।

गुरु के शरीर की रचना दूसरे के लिए ही हुई होती है, इसलिए वह अपने शिष्यों के प्रति पूर्ण समर्पित होता है।  गुरु प्रत्येक क्षण, अपने शष्यों की प्रगति कैसे हो, कैसे उन्हें समझाया जाए, कैसे मार्गदर्शन किया जाए, क्या कहने पर वे समझेंगे, उनकी दृष्टि से क्या करना उचित होगा, ऐसे सभी तरीकों से शिष्य के लिए सोचते रहते हैं। क्योंकि गुरुको अपने बारे में तो कुछ करना ही नहीं होता। वे शिष्य का मार्गदर्शन करने के सही स्थान और सही समय का ही इंतजार करते रहते हैं।

हि.स.योग.४, पेज. ३९५.

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