गुरुकार्य करने के लिए स्त्रियाँ अच्छा माध्यम
मैं सोच रहा था--जो जीवन में वरीष्ट स्थान पर रहता है,उसे सदैव कनिष्ट स्थान पर जाने का डर लगा ही रहता है और दूसरी ओर ,मैं वरिष्ट स्थान पर हूँ,यह अहंकार भी रहता है। लेकिन जो कनिष्ट स्थान पर रहता है,उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता क्योंकि वह वैसे भी कनिष्ट स्थान पर रहता है। इसीलिए ,वरिष्ट स्थान पर हूँ,यह अहंकार भी नहीं रहता है।इसलिए, स्त्रियों को जो मनुष्य समाज ने दूसरा स्थान दिया है,वह अच्छा ही है उनके लिए।क्योंकि इससे उनमें दूसरे स्थान पर जाने का डर नहीं होगा क्योंकि वैसे भी दूसरे स्थान पर ही हैं इसलिए, पहले स्थान पर होने का अहंकार भी नहीं होगा। इसलिए गुरुकार्य करने के लिए स्त्रियाँ अच्छा माध्यम बन सकती हैं।
पता नहीं क्यों,उस दिन लग रहा था कि पुरुष दिखता बलशाली है, वह बलशाली होने का प्रदर्शन भी करता है पर वह केवल दिखावा होता है क्योंकि वह बलशाली होता नहीं है।क्योंकि जीवन में कोई भी संकट आने पर पुरुष जैसे हताश होता है,वैसे स्त्री कभी नहीं होती है।उसमें जन्म से ही सहनशीलता होती है।वह विषम परिस्थितियों में भी अपना मानसिक संतुलन नहीं खोती है।पस्थितियों से झगड़ती है,लड़ती है और खराब परिस्थितियों में भी मार्ग निकाल लेती है।यानी मानसिक रूप से देखो तो स्त्री ही अधिक बलशाली होती है। लेकिन पुरुष बलशाली दिखता है।कहते हैं न--दुबले को डराना नहीं और मोटे को देखकर डरना नहीं। यानी अक्सर जो दिखता है,वह अंदर से होता नहीं है।पुरुष शारीरिक रूप से बलशाली हो सकता है लेकिन स्त्री मानसिक रूप से बलशाली होती है।...
हिसयो-४
पु-३६७
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