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Showing posts from November, 2018

सुक्ष्म से जुडो

कई बार साधको को माध्यम कहते रहता है। की मेरे दशेन भी तुम्हे तुम्हारे पुवे जन्म के पुण्यकमे से मील रहे है। जीस दिन पुण्यकमे समाप्त होगे तो दशेन भी नही हो सकेगे। अरे बाबा साकार तो नीराकार का दरवाजा है। साकार से नीराकार तक पहुचो  स्थुल से सुक्ष्म तक पहुचे तो बुदधु साधक वह भी पुछते कैसे तो आज अगर आप का भी यह प्रश्न है। तो समझो माध्यम के फोटो से आत्म साक्षात्कार हो रहा है। यह आज गुरूशक्तीयो की करूणा है।तो जीस माध्यम के फोटो से आत्माका साक्षात्कार होता है। उसके सामने भी आप अपने आप को पहचान नही पाते हो आप कौन है? आप कहॉ से आये है? आपको कहॉ जाना है? आप को केवल दशेन से ही यह प्रश्न आना चाहीये।आते है क्या नही क्यो की उस क्षण भी आप का चित्त नाशवान शरीर की समस्याओ के उपर ही रहता है। वास्तव मे माध्यम का दशेन कीतना मीला उसका कोई महत्व नही है।” आपने अपने आप तक पहुचने के लिये अपने आप को जानने के लीये  कीतना उपयोग कीया वह महत्वपुणे है” माध्यम का दशेन का सदउपयोग आप करे और अपने आप को पहचाने बस परमात्मा से यही प्राथेना है।आप सभी को खुब खुब आशिवाद                      आपका अपना               

सामूहिकता-हाइवे....कब तक----3

प्रश्न 29 : तो क्या सामूहिकता/हाइवे को छोड देना है ? स्वामीजी : छोड़ देना नहीं...जैसे फल है कि नहीं ? पूर्ण पक जाने के बाद वो झाड़ को छोड़ ही देता है | उसी के... ऑटोमेटिकली ये सब छूट जाता है | और उसके बाद में तुम तुम्हारा खुद का आईडेंटिटी (पहचान) निर्माण कर लेते हो | समर्पण का उद्देश्य क्या है, मालूम है ? तुम तुम्हारे गुरु बन जाओ | देखो, ये गुरू भी एक निमित्य (निमीत्त) है | माने गुरु के बिना आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल सकता लेकिन गुरु...क्या बोलते हैं न, गुरु आत्मसाक्षात्कार नहीं देता | लेकिन गुरु के बिना आत्मसाक्षात्कार नहीं मिल सकता | जैसे मैंने बताया ना - एक दीपक से दूसरा दीपक जलता है लेकिन वो दीपक उसको जलाने जाता है क्या ? नहीं ! वो तो अपने जगह जलते रहता है | सिर्फ बुझा हुआ दीपक आके उसको स्पर्श करता है...वो जल उठता है | तो उसके अंदर, वो जलते हुए दीपक ने उसको जलाई क्या ? नहीं जलाया |  सिर्फ उसके सानिध्य में वो जल उठा | उसी प्रकार से, गुरू अपने ही मस्ती में रहता है | वो अपनी ही स्थिति में रहता है | सिर्फ हम उसके सानिध्य में है... हम उसके पास जाकरके, उसकी आभा को अनुभव करते हैं , उसकी प्

सामूहिकता-हाइवे.....कब तक----1

प्रश्न 27 : आप समझाते हैं कि हमेशा हाइवे पे नहीं रहा जा सकता | एक पतली गली से जाना पडता है | तो ये बात सरल तरीके से समझा सकते हैं ? स्वामीजी : नहीं, एक्च्युअली क्या है, मालूम है क्या कि प्रत्येक को ...इसलिए मैं बता रहा हूँ न...अपने आत्मा को गुरू बनाओ | उससे जितने (जितनी) निकटता करोगे तो बाद में, आखिर में वो ही आपके कार्य आएगा न, साथ मे आएगा | तो झडप से प्रोग्रेस करने के लिए, जल्दी प्रोग्रेस करने के लिए हम सामूहिकता का सहारा लेते है | लेकिन सामूहिकता हमारे साथ में  सदैव रहेगी क्या ? नहीं रहेगी | तो बाद में हमको ही हमारे जीवन के अंतिम पड़ाव में... सब लोग, ये सब पूरा सेंटर अपने साथ रहेगा क्या ? नहीं रहेगा | अपुन अपने रहेंगे | तब उस समय फिर आपके साथ कौन रहेगा ? आपकी आत्मा रहेगी | तो वो आत्मा के साथ अपना रिलेशन्स (रिश्ता) अच्छा करो ना ! उसकी स्थिती अच्छी बनाओ, उसको मजबूत बनाओ | तो उसका साथ आपके जीवनभर, अंतिम साँस तक रहेगा | अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, भावनगर मधुचैतन्य : मार्च,अप्रैल-2016

सामूहिकता-हाइवे....कब तक----2

प्रश्न 28 : सामूहिकता के साथ कब तक रहना यह कैसे मालूम पड़ेगा ? स्वामीजी : नहीं, नहीं | देखो, अब जैसे हाईवे है | यहाँ से मुंबई पहुँचने का है | तो उतने देर तक हम हाईवे का इस्तेमाल करते हैं | बाद में मुंबई पहुँचके अपने को अपनी गली में जाने का है तब हाईवे को छोड़ते ही है ना ! तो उसी प्रकार से गुरु का है और सामूहिकता का है | एक झड़प से प्रोग्रेस तक का वो है | उसके बाद में आगे का रास्ता अपने को ही अपना तय करना पड़ता है | अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, भावनगर | मधुचैतन्य : मार्च,अप्रैल-2016

मोक्ष

आपको मोक्ष मिलना चाहिए , ये शुद्ध इच्छा आप रखो। मोक्ष आपको मिल जाएगा। क्योंकि जैसे ही हम शुद्ध इच्छा करते हैं न , इच्छा करने के बादमें आत्मा ...हम तो सिर्फ इच्छा करते हैं...आत्मा उस तरफ अग्रेसर होने लग जाती है। फिर वह रास्ता ढूँढ़ने लग जाती हैं, मार्ग ढूँढ़ने लग जाती हैं कैसे करने का , क्या करने का , किस तरफ जाने का , वो सारा प्लानिंग चालू हो जाता है। लेकिन शुद्ध इच्छा वो बाहर से नहीं डाली जा सकती हैं। मेरे कहने से आपके अंदर निर्माण नहीं होगी। वह इच्छा आपको ही आपकी करना होगी। तो आप इच्छा करो ना कि मुझे इसी जनम के अंदर मोक्ष-प्राप्ति मिलना चाहिए। शुद्ध इच्छा रखो। तो ऑटोमेटिकली (अपने-आप) क्या होगा , वैसी परिस्थितीयाँ , वैसा वातावरण ...परमात्मा आत्मा के रूप में आपके एकदम पास है , आपके भीतर है , आपके अंदर है । बराबर वह आपके आसपास ऐसा वातावरण बनाएगा , ऐसी परिस्थितियाँ निर्माण करेगा , आपके जीवन मे ऐसे लोगो को भेजेगा जो आप के मोक्ष के राह  के संगी - साथी बने, उन्हें पहचानो, उनसे आत्मीयता बनाए रखो, उनको अपनाओ ओर फिर वो आपको बराबर उस रास्ते पे लेके जाएगा , और धीरे-धीरे , धीरे -धीरे , धीरे -धीरे

જીવનમાં અમે સંપૂર્ણ સમર્પણ ભાવ કેવી રીતે લાવીએ?

પ્રશ્ન 10: સ્વામીજી, મારો પ્રશ્ન છે કે પોતાના જીવનમાં અમે સંપૂર્ણ સમર્પણ ભાવ કેવી રીતે લાવીએ? સ્વામીજી : મેં આપને કહ્યું કે આપ પોતાનો સમગ્ર ભૂતકાળ મને આપી દો, હું આપને સ્વર્ણિમ ભવિષ્ય આપીશ. સમર્પણનો અર્થ બિલકુલ સરળ છે. પહેલાના સમયમાં લોલકવાળી ઘડિયાળ વપરાતી હતી. તેમાં લોલકનો કાટો એક બાજુથી બીજી બાજુ જતો હોય છે. તે જ રીતે જ્યારે આપણું ચિત્ત ભૂતકાળની ઘટનાઓમાં જાય છે, તેટલું જ થોડા સમય પછી ભવિષ્યની વાતો પર જાય છે. જેટલા વેગથી ભૂતકાળમાં જશે, તેટલા જ વેગથી ભવિષ્યમાં જશે. ક્યારેક ભૂતકાળ તો કયારેક ભવિષ્યકાળમાં ચિત્ત જતું રહે છે. તેના કારણે આપની અડધી શક્તિ ભૂતકાળના અને અડધી શક્તિ ભવિષ્યકાળના વિચાર કરવામાં ખર્ચાઈ જશે. જ્યારે આપ વર્તમાનમાં કામ કરશો, ત્યારે આપની પાસે કંઈ શક્તિ જ નહિ બચે, તેથી જે કોઈ કાર્ય આપણે કરીએ છીએ, તેમાં આપણને સફળતા નથી મળતી. હું જ્યારે આપને સમર્પણ કરવા કહું છું, ત્યારે સમર્પણનો અર્થ છે કે ભૂતકાળનો એક પણ વિચાર આપને ન આવે. આવી સ્થિતિ આપની થઈ જાય તો આપનું ચિત શક્તિશાળી બનશે. જ્યારે આપને ભૂતકાળના વિચાર નહિ આવે, તો સ્વભાવિકરૂપે જ આપને ભવિષ્યકાળના વિચાર નહિ આવે. પરિણામે આપનું ચિત

ગુરુચરણમાં શ્રદ્ધા હંમેશા કેવી રીતે જળવાઈ રહે?

પ્રશ્ન 11: ગુરુચરણમાં શ્રદ્ધા હંમેશા કેવી રીતે જળવાઈ રહે? સ્વામીજી : મને લાગે છે, ગુરુચરણ પર ચિત્ત રાખીને. કારણ કે ગુરુચરણ પર ચિત્ત રાખીશું, તો ત્યાં સારા લોકોની કલેક્ટિવિટી(સામૂહિકતા) છે, સારા સાધકોની કલેક્ટિવિટી. તો આપો-આપ તે કલેક્ટિવિટી આપણને મળે છે, તો આપણું ચિત્ત ત્યાં રહે છે. ઘણીવાર શું થાય છે, ખબર છે? આપ ફરિયાદ કરો છો, આ સાધક ખરાબ છે, તે સાધક ખરાબ છે, તે સાધક ખરાબ છે, સારું. મને બધું દેખાતું હોય છે, સારા પણ સાધક દેખાતા હોય છે, ખરાબ પણ સાધક દેખાતા હોય છે. તમે ખરાબ છો, તેથી તમારી આસપાસ ખરાબ લોકોની કલેક્ટિવિટી છે. તમે સારા રહેશો, તમારી આસપાસ સારાની કલેક્ટિવિટી રહેશે. તે બધા એકત્રિત થઈ જાય છે. દારૂ પીવાવાળા એક સાથે, બીડી પીવાવાળા એક સાથે, ગાંજા પીવાવાળા એક સાથે, આ ખરાબ -ખરાબ લોકો એક સ્થાને સમૂહ બનાવી લે છે, કલેક્ટિવિટી બનાવી લે છે. તો તમારી આસપાસ ખરાબ લોકો છે, તો તુરંત ત્યાંથી ભાગો. કારણ કે આ ખરાબ લોકો છે, તો આપણે ખરાબ છીએ તો જરા સારામાં જાઓને! તો મને બધું દેખાઈ રહ્યું છે. સારા પણ સાધક છે, ખરાબ પણ સાધક છે. બધા પ્રકારના સાધક છે. પરંતુ તમે જેવા છો, તેવા તમારી આસપાસ એકઠા થાય છે. મધુચ

समस्या ओर ध्यान

जब आपके जीवन में समस्या आती है तब आपका ध्यान बढ़ जाता है। जैसे समस्या समाप्त हुई की आपका ध्यान छूट जाता है। ये तो ऐसा हुआ कि जब आप लंगड़े हो तब आप दोड़ने की कोशिश करते हो और जब ठीक हो तब बैठ जाते हो। अरे बाबा ध्यान के लिए उपयुक्त समय यही है कि आपके जीवन में कोई समस्या नहीं है, तो फिर नई समस्या के आने का इंतजार क्यों करते हो की समस्या आये फिर हम ध्यान करेंगे। ध्यान में नियमितता की अत्यंत आवश्यकता है। प्रवचन अंश महाशिवरात्रि 2013

Nepal

If I am made the Brand Ambassador in Nepal, then I can come here and offer my services free of cost. This is my Guru’s area. I will be very happy to come to Nepal, my Guru’s area, and offer my services. I will feel that I have got the opportunity to serve at my Guru’s feet by serving the people in Nepal -that it is my good fortune if I get such an opportunity! My Guru’s area ‘Nepal’, has given the prasad of the spiritual experience of Samarpan to the entire world which is connecting all human beings to one another. I am thankful to the entire media of Nepal from the bottom of my heart. They have propagated and spread my Guru’s knowledge, thereby bestowing their co-operation onto this good work. Doing good work and offering co-operation for good work are one and the same. Lots of blessings to everyone,         Your own,          Baba Swami,          Kathmandu Nepal (Shivkrupanand Swami) 28/11/2018

नेपाल

यदी नेपाल मे मुझे बैन्डएम्बेसेडर बनाया जाता है । तो मै मेरी सेवा निशुल्क आकर यहॉ दे सकता हु। यह मेरा गुरूक्षैत्र है । मुझे गुरूक्षैत्र नेपाल मे आकर सेवा देने मे प्रसन्नता होगी। मुझे लगेगा मुझे लगेगा की गुरूक्षैत्र “नेपाल” के सेवा कर गुरूचरण पर रहने का अवसर मीलेगॉ ।मेरा सौभाग्य है। अगर यह अवसर मुझे मीलता है। गुरूक्षैत्र “ नेपाल” ने सारे विश्व को वह समेपण अनुभुती का एक प्रसाद दिया है। जो आज मनुष्य को मनुष्य से जोडता है। नेपाल के सुमुचे मिडीया का मै ह्रदय से आभारी हु जिसने मेरे गुरू का ज्ञान का प्रचार प्रसार कर एक पवीत्र काये मे सहयोग प्रदान किया अच्छा काये करना वअच्छे काये मे सहयोग करना दोनो समान है। सभी को खुबखुब आशिेवाद             आपका अपना      बाबा स्वामी काठंमान्डु नेपाल ( शिवकृपानंद स्वामी) 28/11/2018

सुक्ष्म शरीर के काये का प्रांरभ

अभी हाल मे हुये नेपाल कांठमान्डु मे सपन्न होना ही एक महत्व पुणे घटना थी।इस शिबीर के सपन्न होने के साथ स्थुल शरीर से होने वाला गुरूकाये भी सपन्न हो गया है। अब सुक्ष्म शरीर से गुरूकाये का प्रांरभ हुआ है। अब काये कोई करेगॉ नही पर काये होगा और सुक्ष्म शरीरका क्षैत्र सारा विश्व है। अब गुरूकाये उन्ही लोगो से होगा जो सु़्क्ष्म शरीर से जुडे हुये है। और जो एक पवीत्र आत्मा बनकर ही काये कर सकते है। क्योकी अब शरीर के अंहकार के साथ काये संभव नही होगा।अब ध्यान साधना मे भी उन्ही की प्रगती होगी जो सुक्ष्म शरीर के साथ जुडे हुये है। अब माध्यम का काये सहस्त्रार चक्र से होगा क्योकी नेपाल विश्व का ही सहस्त्रार चक्र है। अब समेपण ध्यान “संस्कार” एक बडे विशाल क्षैत्र मे प्रवेश कर रहा है। आप सभी पवीत्र और शुद्ध आत्माऐ सुक्ष्म शरीर के साथ जुडकर आप अब आध्यात्मीक क्षैत्र नयी उंचाई को प्राप्त करे । आप सभी को खुब खुब आशिेवाद          आपका अपना          बाबा स्वामी         26/11/2018 काठमांन्डु नेपाल

Commencement of the work of the Subtle Body

Recently the shibir which concluded at Kathmandu, Nepal was itself a very important event. Along with the conclusion of this Shibir the Guru-karya being performed physically has also ended. Now Guru-karya that will be performed through the subtle body has commenced. Now the work will not be performed by anyone, but will happen (automatically). And the sphere of the subtle body is the entire world. Guru-karya will now take place only through those people who are connected with the subtle body, and only those who can work as pure souls. This is because work will not happen with the ego of the physical body. Now, progress in the spiritual practice of meditation will also take place for only those people who are connected to the subtle body. Now, the medium's work will take place through the crown chakra (sahastrar), because Nepal itself is the crown chakra of the world. Now "the values" of Samarpan Meditation are entering a vast and enormous sphere. All you pure and holy so

देवपूजा छोड़ , श्राद्ध छोड़ कर गुरुपूजन करना योग्य है क्या? ध्यान के साथ-साथ देवपूजा जरूरी है क्या?

प्रश्न: देवपूजा छोड़ , श्राद्ध छोड़ कर गुरुपूजन करना योग्य है क्या? ध्यान के साथ-साथ देवपूजा जरूरी है क्या? गुरुमाँ:  तो स्वामीजी ने कभी किसी चीज को छोड़ने के लिए कहा है कि आप भगवान की पूजा मत करो , श्राद्ध मत करो , घर के कोई रीतिरिवाज मत मानो। ऐसा कभी भी स्वामीजी ने , अपने किसी भी लेक्चर में नहीं कहा है कि ये करो या ये मत करो। जो करना है , जो नहीं करना है वो आपका अपना निर्णय है। वो स्वामीजी पे या समर्पण के ऊपर मत थोपिए। आपको जो करना है आप कर सकते हैं। ध्यान के साथ पूजा जरूरी है क्या? वही बात है। स्वामीजी ने तो किसी चीज के लिए मना नहीं किया। जो छूट जाए , छूट जाए। जो योग्य है, रहेगा। जो योग्य नहीं होगा , छूट जाएगा। तो जो छूट गया उसके लिए भी दोष मत दो। जो कर लिया उसके लिए भी कोई बात नहीं है। आप बस ध्यान कीजिए। उसके साथ में जो करते आये हैं न, करते रहिए। यदि छूट गया , दुःखी मत होइए। हो जाता हैं। छूट जाता है कुछ। तो दुःखी होने की जरूरत नहीं हैं। लेकिन हाँ, ऐसे कि अभी हम तो समर्पण में आ गए , तो अभी तो हम ध्यान ही करेंगे। अभी हम पूजा नहीं करेंगे या अभी हम ये कार्य , वो कार्य करेंगे, श्राध्द नह

आश्रम से जुडी अनुभूति

     आश्रम भूमि में बौद्ध गुरुओं के दर्शन : दांडी आश्रम में पूज्य गुरुदेव ने गुरु शक्तियों को आवाहन किया था और गुरुदेव का प्रवचन हो रहा था | उस समय मैंने देखा की आश्रम में 4-5 बौद्ध गुरु तथा बौद्ध शिष्य उनके पारंपारिक वेश में आश्रम के कक्षों का अवलोकन कर रहे हैं | यह दृश्य दो-तीन बार दिखाई दिया और बाद में वे अदृश्य हो गए | लेकिन उस समय मेरे मुंह से अचानक "बुद्धम् शरणम् गच्छामि" यह शब्द निकल रहे थे | दो तीन बार यह शब्द मेरे मुंह से निकले | यह दृश्य अभी भी कभी कभी दिखता है | मेरे लिए यह एक कभी भी न भूलने वाली अनुभूति थी | बाद में मालूम हुआ कि और कई साधकों को भी यही अनुभूति हुई थी | मनोहर पाटील, अंबरनाथ केंद्र,मुंबई | मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सितंबर-2010

गुरूकार्य से आये अहंकार पे संतुलन

प्रश्न 26 : मैं जब लगातार गुरुकार्य करता हूँ तब "मैं" का भाव आता है ऐसे लगता है | यह "मैं" का भाव न आये इसके लिए क्या कर सकते हैं ? स्वामीजी : आपको आपका मैं का भाव नजर आ रहा है यह भी एक अच्छी अध्यात्मिक स्थिति का द्योतक है | बहुत सारे लोगों को ये पता नहीं चलता | तो उसके लिए कुछ दिन आराम करो, कुछ दिन दूर रहो, कुछ दिन पीछे रहकर कार्य करो | अहंकार कहाँ आता है ? जब आगे आगे होके कार्य करते हो कि नहीं, तब अहंकार आता है कि मैंने किया | तो पीछे रहके कार्य करो | थोडा घर बैठके देखो आठ-दस दिन | दूसरे कार्य में लगो | लेकिन नियमित ध्यान करो | लेकिन कार्य से थोड़ा कम हो | आप देखिए न, मैं भी तो ऐसे ही करता हूँ | कुछ एकदम खूब कार्य किये, कार्य किये, कार्य किये; बाद में एकदम बेकार, एकदम बाजू में | तो ऐसा अपने ही अपने को अैडजस्ट करना पड़ता है | अपने को संतुलित करने के लिए, अपने को बैलेंस करने के लिए कोई नहीं आएगा | और दुनिया में तुमको ऊपर चढ़ाने वाले सब मिल जाएंगे, नीचे उतरना अपने को ही अपना पड़ेगा | आपको ही आपके जमीन पर उतरना पड़ेगा | तो,  बीच-बीच में जमीन पर उतरा करो ; इतनी पतंग क

સમર્પણ શબ્દનો અર્થ

પ્રશ્ન 9: સ્વામીજી, સમર્પણ શબ્દનો અર્થ સમજાવતા અમને માર્ગદર્શન આપો કે ગુરુ પ્રત્યે શતપ્રતિશત્ સમર્પિત અમારે કેવી રીતે થવાનું છે? સ્વામીજી : 'સમર્પણ' શબ્દનું અંગ્રેજીમાં શુદ્ધ ભાષાંતર કરવું મુશ્કેલ છે. સમર્પણ કરવું એટલે કે પોતાના જીવનમાં પૂર્ણ સમય આપ અનુભવ કરો કે તે આપની જ સાથે છે, આપની જ પાસે છે. જે કંઈ ઘટના બની રહી છે, તેને એક સાક્ષી ભાવથી જુઓ. સારું થયું, તો પણ ગુરુની કૃપામાં થયું. ખરાબ થયું તે પણ ગુરુની કૃપામાં થયું. આપ પૂર્ણ સાક્ષીભાવ રાખો. નાનામાં નાની ઘટનાને પણ સાક્ષીભાવથી જુઓ. આપ વિચલિત ન થાઓ. આપના મનમાં એક પણ નકારાત્મક ભાવ ન આવે. 10 સકારાત્મક વિચાર કર્યા પછી એક પણ નકારાત્મક વાત કરો છો, ત્યારે 10 સકારાત્મક વાતોની ઉર્જા નષ્ટ થઈ જાય છે. એક મરાઠી લેખકે એક નાટક લખ્યું હતું - "એક હી પ્યાલા". જેમાં તેમણે લખ્યું હતું કે જો આપની સામે દારૂનો પહેલો પ્યાલો આવે, ત્યારે આપ પોતાની જાત પર જો નિયંત્રણ ન કરી શકો, તો પછીના પ્યાલા આપની ઉપર નિયંત્રણ કરી નાખશે. તેથી જો બની શકે, ત્યારે રોકી શકો તો તે પહેલાં પ્યાલાને રોકો. બરાબર તે જ રીતે આ નકારાત્મક વિચારનો પહેલો પ્યાલો જ્યારે આપ ર

जीवन में गुरु का आगमन पूर्व आयोजित

प्रश्न 25 : क्या यह पूर्व आयोजित है कि हमें हमारे जीवन में कौन से गुरु मिलेंगे ? स्वामीजी : हाँ, यह पूर्व-आयोजित है कि हमें जीवन में कौन से गुरु मिलेंगे | पर वहाँ तक पहुँचना अपनी स्थिति पर आधारित है | जब मेरी निश्चित स्थिती हुई, तब मेरे जीवन में मुझे अपने गुरु तभी मिले और तब मैं हिमालय गया | प्रत्येक के जीवन में गुरु मिलने की वजह अलग-अलग भी हो सकती है | जैसे की बीमारी, समस्या, संकट या अंदर से गुरु से मिलने की तीव्र इच्छा होना यह स्वप्न में गुरु के दर्शन होना | ये सब माध्यम है जिनके जरिए गुरु तक पहुँच सकते हो | पर एक बार गुरु तक पहुँच जाने के बाद उसे (माध्यम को) भूल जाना चाहिए | मेरा अनुभव यह रहा है कि एक बार जब मैं गुरु के पास पहुँच गया, तब से मेरे लिए गुरु की खोज बंद हो गई और भीतर की यात्रा शुरू हो गई | जो आपको अंतर्मुखी कर दे, वही आपका गुरु है               वास्तव में, गुरु आप के बाहर नहीं है, आपके अंदर है | आपकी आत्मा ही आपका गुरु है | जब तक हमें पहुँचे हुए गुरु नहीं मिलते हैं, जब तक हमारे जीवन में हमें भीतर की ओर मोड़नेवाले गुरु नहीं मिलते हैं, तब तक हमें अपने-आपका चेहरा नहीं दिख

गुरूदेव के संदेश से जुडी अनुभूति

       पूज्य स्वामीजी का आत्मपरीक्षण यह संदेश पढ़ने के बाद, मैंने रोज सुबह 5:00 बजे नियमित ध्यान करने का निश्चय किया, जो मेरे जीवन में बहुत बड़ा बदलाव था | स्वामीजी के बताते हुए आत्म परीक्षण के तरीके से सबसे पहले जो बात मैंने महसूस की, वह यह थी कि मुझमें अनुशासन की कमी थी, जो की समर्पण की पहली पादान है | मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि ध्यान के अलावा मेरे जीवन की अन्य गतिविधियों में भी अनुशासन आ गया है और मैं समय का पालन करने लगा हूँ | सभी साधकों को यह आजमाना चाहिए एक साधक, केनेडा मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सितंबर-2012

समर्पण नाव

आप क्या करते हो उसपे सदैव गुरुशक्तियोंकि नजर होती है। बस इस बात का एहसास आपको होना चाहिये। कई बार गुरुशक्तियां आपको अनुभव भी करा चुकी है। अब उस अनुभव से कुछ सिखो। चित्त स्वयं गंदा या कमजोर नही होता, हम उसे दिनभर हजारो लोगोमें डालकर गंदा और कमजोर कर देते है। आप आंखोसे भी किसी कि फोटो देखते हो तो उसका अच्छा या बुरा प्रभाव आप पर पडता है। तो आप तो जीवन में आये बुरे बुरे व्यक्तियोंकी  फोटो चित्त से कई बार देखते हो और चित्त को गंदा करते हो। अब बहोत हो चुका। जीवन में बुरी घटना एक बार घटी होगी पर आप उसे याद करके बार बार घटित करते हो।अब इन सबसे बाहर आ जाओ। यह तुम्हारे लीये कठीण होगा, यह तुम कहोगे, यह तो मै मानकर हि चल रहा हुँ।इसलिये कह रहा हुँ, मेरे चैतन्य को अपने पास अनुभव करो, तो इन सब बातोसे आपको मुक्ती मिल जायेगी। या तो तैर कर नदी पार करो या समर्पण नाव से पार करो। पर नाव पर बैठना है तो नाव के नाविक पर सम्पूर्ण विश्वास और श्रध्दा रखना होगी। अब आप का आप जानो, मुझे बताना था मैंने बता दिया। आप सभी उस पार जीवन में पहुंचे इसी शुध्द ईच्छा के साथ, आपका बाबा स्वामी मधुचैतन्य, जानेवारी, 2012

शरीर

जब आत्मा शरीर की प्रतीक्षा करती है, तो शरीर व्यर्थ या महत्वहीन कैसे हो सकता है ? आत्मा ने जिस शरीर को बड़ी प्रतीक्षा के बाद पाया है, उस शरीर की देखभाल करनी ही चाहिए। यह हमारा कर्तव्य नहीं आत्मा की आवश्यकता है । भाग १

सत्य की अनुभूति

                    में एक दिन ऑफिस में बैठकर अध्यात्मिक सत्य पढ़ रहा था | उस समय मेरा एक मित्र मुझे मिलने आया | उसने मुझसे पूछा कि मैं क्या पढ़ रहा था | मैंने उसे 'आध्यात्मिक सत्य' दिया तो उसने पढ़ना शुरू किया और दो पन्ने पढ़ते-पढ़ते उसने 'आध्यात्मिक सत्य' बंद कर दिया तथा अपनी आंखें भी बंद कर ली | थोड़ी देर बाद मेरे सामने देख कर वह बोला कि जब वह 'सुंदरकांड' का पाठ करता था तब उसे एक बार एक अलौकिक अनुभूति हुई थी | वही अनुभूति इस पुस्तक के केवल दो पन्ने पड़ने से हुई है | उसके पूछने पर मैंने उसे पूज्य स्वामीजी के बारे में तथा समर्पण ध्यान के बारे में जानकारी दी | पहले मेरे कई बार कहने पर भी वह शिविर में नहीं आता था | किंतु अब वह अपनी पत्नी के साथ शिविर में सहभागी होना चाहता है | पूज्य गुरुदेव की कृपा सदैव हम सब पर हो ऐसी शुद्ध प्रार्थना है | जसवंत परमार, गांधीनगर | मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सप्टेंबर -2014