गुरुकार्य

वास्तव में , गुरुकार्य यानी आत्मा का कार्य , जिसे करने से अपनी आत्मा को प्रसन्नता मिले , वह कार्य। क्योंकि आत्मा को प्रसन्न करने के लिए हम जो भी कार्य करेंगे , उससे आत्मा प्रसन्न होगी। और आत्मा प्रसन्न होगी तो उसकी ग्रहण करने की क्षमता बढ़ेगी। और ग्रहण करने की क्षमता बढ़ेगी तो आध्यात्मिक प्रगति होगी। सबकुछ एक - दूसरे के साथ बँघा हुआ ही है। गुरुकार्य करते हैं यानी हम गुरु के लिए कुछ करते हैं ऐसा नहीं है। वास्तव में  हमारा वह कार्य हमारी आत्मा के लिए किया गया कार्य होता है। हम हमारे शरीर में आत्मा को महत्त्व नहीं देते , उसकी बात भी नहीं सुनते। इसलिए हम कहते हैं , गुरु के लिए कार्य कर रहे हैं। और गुरुकार्य हम इसलिए कहते हैं कि हमारा हमारे गुरु के प्रति आदर का भाव होता है और हम उनकी सेवा करना चाहते हैं , उनका कार्य करना चाहते हैं। जबकि गुरुदेव का तो कोई अस्तित्व ही नहीं है , वे तो परब्रह्म की स्थिति को घारण किए हुए हैं। तो हम जो भी कार्य करेंगे , वह उनकी प्रेरणा से करेंगे , उनके नाम से करेंगे लेकिन वास्तव में , वह हमारी ही आत्मा की आध्यात्मिक प्रगति के लिए करते रहते हैं। गुरु का नाम सदैव रहता है , इसलिए प्रथम इस भ्रम में से बाहर निकालो कि गुरुकार्य करके हम किसी के ऊपर उपकार कर रहे हैं। हम किसी के भी ऊपर उपकार नहीं करते , वास्तव में हम हमारा ही कार्य दूसरे के नाम से करते रहते हैं। इसीलिए गुरुकार्य हम जितना भी करते हैं , हमारी आत्मा उतनी ही सशक्त हो जाती है और सशक्त आत्मा परमात्मा की शक्ति कि , कृपा की उतनी ही पात्र बनती है।

हिमालय का समर्पण योग भाग  -४

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