सद्गुरु
*सद्गुरु तो उस अवस्था में पहुँच जाते है कि उन्हें उनकी पत्नी भी "माँ " के समान अनुभव होने लगती है । स्त्री औऱ पुरुष या शरीर के भेद से परे वें होती है ; उनकी दृष्टि में सभी आत्मा ही होते है । जब शरीर का लिंग -भेद ही नहीं है तौ स्त्री देह का आकर्षण भी नहीं होता है । इसलिए जीवन में जब भी सद्गुरु दर्शन प्राप्त हो या सानिध्य मिले तो किसी भी कीमत पर लो । जो भी कीमत चूकाओगे , वह जो मिलेगा उसके सामने कुछ भी नहीं है । सद्गुरु के जीवन का प्रत्येक क्षणे बहुमूल्य है । एक क्षण भी आपको दर्शन मिले तो भी उसका उपयोग अंतर्मुखी होने के लिए करो क्योंकि इससे अच्छा उस बहुमूल्य "क्षण" का कोई उपयोग नही है । य़ह बात आप सभी के समझ में आए औऱ व्यवहार मेँ भी य़ह बात हो सके , ऐसी प्रभु से प्रार्थना है । आप सभी को खूब -खूब आशीर्वाद !*
*✍. . .आपका*
*बाबा स्वामी*
*"आशीर्वचन "*
*मधुचैतन्य -सितम्बर /अक्टूबर*
*बाबा स्वामी*
*"आशीर्वचन "*
*मधुचैतन्य -सितम्बर /अक्टूबर*
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