गुरूकार्य से आये अहंकार पे संतुलन

प्रश्न 26 : मैं जब लगातार गुरुकार्य करता हूँ तब "मैं" का भाव आता है ऐसे लगता है | यह "मैं" का भाव न आये इसके लिए क्या कर सकते हैं ?

स्वामीजी : आपको आपका मैं का भाव नजर आ रहा है यह भी एक अच्छी अध्यात्मिक स्थिति का द्योतक है | बहुत सारे लोगों को ये पता नहीं चलता | तो उसके लिए कुछ दिन आराम करो, कुछ दिन दूर रहो, कुछ दिन पीछे रहकर कार्य करो | अहंकार कहाँ आता है ? जब आगे आगे होके कार्य करते हो कि नहीं, तब अहंकार आता है कि मैंने किया | तो पीछे रहके कार्य करो | थोडा घर बैठके देखो आठ-दस दिन | दूसरे कार्य में लगो | लेकिन नियमित ध्यान करो | लेकिन कार्य से थोड़ा कम हो | आप देखिए न, मैं भी तो ऐसे ही करता हूँ | कुछ एकदम खूब कार्य किये, कार्य किये, कार्य किये; बाद में एकदम बेकार, एकदम बाजू में | तो ऐसा अपने ही अपने को अैडजस्ट करना पड़ता है | अपने को संतुलित करने के लिए, अपने को बैलेंस करने के लिए कोई नहीं आएगा | और दुनिया में तुमको ऊपर चढ़ाने वाले सब मिल जाएंगे, नीचे उतरना अपने को ही अपना पड़ेगा | आपको ही आपके जमीन पर उतरना पड़ेगा | तो,  बीच-बीच में जमीन पर उतरा करो ; इतनी पतंग को ऊपर मत उड़ाओ | अपने आपको संतुलित करो, अपने आपको बैलेंस करो;  तो ये आपको आपका ही करना पड़ेगा | लेकिन एक अच्छी बात है, कि आपको आपका नजर आता है कि आपके अंदर अहंकार आ गया | जब ऐसा लगे कि अहंकार आ गया, थोड़े दिन शांत हो जाओ, चुप हो जाओ, पीछे रहके कार्य करो, पीछे से मदद करो, अगुआई मत करो | तो सब ठीक हो सकता है |

मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सितंबर-2010

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