सत्य की अनुभूति
में एक दिन ऑफिस में बैठकर अध्यात्मिक सत्य पढ़ रहा था | उस समय मेरा एक मित्र मुझे मिलने आया | उसने मुझसे पूछा कि मैं क्या पढ़ रहा था | मैंने उसे 'आध्यात्मिक सत्य' दिया तो उसने पढ़ना शुरू किया और दो पन्ने पढ़ते-पढ़ते उसने 'आध्यात्मिक सत्य' बंद कर दिया तथा अपनी आंखें भी बंद कर ली | थोड़ी देर बाद मेरे सामने देख कर वह बोला कि जब वह 'सुंदरकांड' का पाठ करता था तब उसे एक बार एक अलौकिक अनुभूति हुई थी | वही अनुभूति इस पुस्तक के केवल दो पन्ने पड़ने से हुई है | उसके पूछने पर मैंने उसे पूज्य स्वामीजी के बारे में तथा समर्पण ध्यान के बारे में जानकारी दी | पहले मेरे कई बार कहने पर भी वह शिविर में नहीं आता था | किंतु अब वह अपनी पत्नी के साथ शिविर में सहभागी होना चाहता है | पूज्य गुरुदेव की कृपा सदैव हम सब पर हो ऐसी शुद्ध प्रार्थना है |
जसवंत परमार, गांधीनगर |
मधुचैतन्य : जुलाई,अगस्त,सप्टेंबर -2014
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