देवपूजा छोड़ , श्राद्ध छोड़ कर गुरुपूजन करना योग्य है क्या? ध्यान के साथ-साथ देवपूजा जरूरी है क्या?
प्रश्न: देवपूजा छोड़ , श्राद्ध छोड़ कर गुरुपूजन करना योग्य है क्या? ध्यान के साथ-साथ देवपूजा जरूरी है क्या?
गुरुमाँ: तो स्वामीजी ने कभी किसी चीज को छोड़ने के लिए कहा है कि आप भगवान की पूजा मत करो , श्राद्ध मत करो , घर के कोई रीतिरिवाज मत मानो। ऐसा कभी भी स्वामीजी ने , अपने किसी भी लेक्चर में नहीं कहा है कि ये करो या ये मत करो। जो करना है , जो नहीं करना है वो आपका अपना निर्णय है। वो स्वामीजी पे या समर्पण के ऊपर मत थोपिए। आपको जो करना है आप कर सकते हैं।
ध्यान के साथ पूजा जरूरी है क्या? वही बात है। स्वामीजी ने तो किसी चीज के लिए मना नहीं किया। जो छूट जाए , छूट जाए। जो योग्य है, रहेगा। जो योग्य नहीं होगा , छूट जाएगा। तो जो छूट गया उसके लिए भी दोष मत दो। जो कर लिया उसके लिए भी कोई बात नहीं है। आप बस ध्यान कीजिए। उसके साथ में जो करते आये हैं न, करते रहिए। यदि छूट गया , दुःखी मत होइए। हो जाता हैं। छूट जाता है कुछ। तो दुःखी होने की जरूरत नहीं हैं। लेकिन हाँ, ऐसे कि अभी हम तो समर्पण में आ गए , तो अभी तो हम ध्यान ही करेंगे। अभी हम पूजा नहीं करेंगे या अभी हम ये कार्य , वो कार्य करेंगे, श्राध्द नहीं करेंगे ऐसे कुछ वो नहीं है। आपके घर के जो भी रीतिरिवाज हैं आपको पालन करना ठीक रहता है।
मधुचैतन्य अप्रैल २०११
No regular post???
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