समर्पण ध्यान द्वारा हमें अपने व्यावहारिक जीवन में सब सुख कैसे मिल सकता है ?

पत्रकार : समर्पण ध्यान द्वारा हमें अपने व्यावहारिक जीवन में सब सुख कैसे मिल सकता है  ?

स्वामीजी : एक स्तर होता है - जो निगेटिव (नकारात्मक) विचार कर सकता है , वह पॉजिटिव (सकारात्मक) विचार भी कर सकता है । अगर आपने किसी को कहा कि बाबा रे , नकारात्मक विचार  मत कर , सकारात्मक विचार कर , पर आखिर में आप उसे विचार ही करने के लिए कह रहे हैं । यानी जो सकारात्मक विचार कर रहा है , वह वापस नकारात्मक विचार भी कर सकता है । सकारात्मक विचार और नकारात्मक विचार दोनों आखिर में एक ही स्तर के है । मैं कहता हूँ  - विचार ही मत कर ना ! सकारात्मक भी मत कर , नकारात्मक भी मत कर।
तू  मध्य में रह , निर्विचार (स्थिति) में रह । सकारात्मक विचार करनेसे भी हम अपनी एनर्जी (उर्जा) को वेस्ट (बर्बाद) करते हैं । नकारात्मक विचार करते हैं ना , तो भी हम अपनी एनर्जी वेस्ट करते हैं कोई भी विचार किया तो हम अपनी एनर्जी वेस्ट करते हैं । सब एनर्जी स्टोर (जमा) कर और स्टोर करके कार्य में लगा तो रिजल्टस् (परिणाम) अच्छे आएँगे । हम भगवान् के पास जाकर कहते हैं , "भगवान् , मुझे सुख दे ।" तो वास्तव में हम माँगते रहते हैं कि भगवान्  , मुझे दुःख दे । क्योकि सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । आपको यह नहीं समझ में आ रहा है कि आप एक माँग रहे हो तो दुसरा तो मिल ही रहा
है । दूसरा , माँगा कि बाबा  , मुझे दुःख दे , फिर भी वह सुख देगा । कहने का मतलब ध्यान उसके उपर की स्टेज
है ।  सुख और दुःख के उपर की स्टेज है । मन सुखीहो सकता है  , मन  दुःखीहो सकता है । चित्त दुःखी नहीं होगा  , चित्त सुखी नहीं होगा । दूसरा मन बाहर बहुत आसानी से जा सकता है  , पर चित्त पर नियंत्रण हुआ तो मन पर भी नियंत्रण हो सकता हैं यानी चित्त के अधिन मन ।
   
गोवा में हुई पत्रकार परिषद के  दौरान पूज्य स्वामीजी के साथ हुए प्रश्नोत्तर

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