गुरुआवाहन, गुरुमंत्र और प्रार्थना के बिना ध्यान...कब !
प्रश्न 23 : स्वामीजी, गुरुआवाहन, गुरुमंत्र और प्रार्थना के बिना ध्यान करने में क्या आपत्ति हो सकती है ?
स्वामीजी : कोई भी आपत्ति नहीं है | वास्तव में, ध्यान तो बहुत सरल है | ध्यान तो बहुत आसान है | हम ही जलेबी सरीखे गोल-गोल है | हम को सीधा करने के लिए हमको इंस्ट्रूमेंट (साधन) लगते हैं | हमको सीडी लगती है, हमको फोटो लगता है, हमको आरती लगती है, हमको दिया लगता है, हमको मंत्र लगता है | तो ये सब उसीके लिए है जो आडा-टेढ़ा है | जो ऑलरेडी (पहले से ही) सीधा है उसको सीधा करने की क्या जरूरत है ? अगर तुम्हारा सीधा ही ध्यान लग रहा है, तो ध्यान करो | इन सब चीजों की कोई आवश्यकता नहीं है | यह सब बाबागाड़ियाँ है | तो इसकी कुछ आवश्यकता नहीं है | ध्यान का इससे कुछ संबंध भी नहीं है | आपकी न, पलक झपकती है, ऐसी, इतने में आप ध्यान में चला जाना चाहिए, इतनी अच्छी स्थिति आपकी होनी चाहिए | लेकिन ये तब होगी जब इन बाबागाड़ियों का सहारा लेते-लेते लेते-लेते आप उस स्थिति तक आएंगे | तो ये सब बाबागाड़ियाँ है, इनकी कुछ आवश्यकता नहीं है | अगर आप का ध्यान इन सब के बिना लगता है तो बहुत अच्छी बात है | तो वो ही चाह रहा हूं मैं इन सबके बिना हो | लेकिन होता क्या है, कि जब तक धीरे-धीरे-धीरे आपके शरीर को आदत नहीं लगती, तब तक ये सब उपयोग करना पड़ते हैं | और जब आपको आदत लग जाए एक बार, ध्यान की आदत लग जाए तो उसके बाद में एक दिन आप खाना नहीं खाओगे, लेकिन ध्यान के बिना आप रह नहीं सकते | ऐसी अवस्था आपकी होना चाहिए | ऐसी हो गई फिर सब इन चीजों की आवश्यकता नहीं है | तो कोई आपत्ति नहीं है, बहुत अच्छी बात है | अगर इन चीजों के बिना भी अगर तुम्हारा ध्यान लगता है तो कोई आपत्ति नहीं है |
मधुचैतन्य : अक्टूबर,नवंबर,दिसंबर -2013
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